नई दिल्ली: “थाईलैंड की संस्कृति, इतिहास और विरासत बहुत समृद्ध है. यह एशिया की साझा दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं का एक सुंदर उदाहरण है. भारत और थाईलैंड के बीच दो हजार वर्ष से भी ज्यादा समय से गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं. रामायण और रामकियेन हमें जोड़ते हैं. भगवान बुद्ध के प्रति हमारी साझा श्रद्धा हमें एकजुट करती है.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने थाईलैंड में आयोजित संवाद कार्यक्रम के दौरान भेजे गए वीडियो संदेश में यह बात कही. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष, जब हमने भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष थाईलैंड भेजे थे, तो लाखों भक्तों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी. हमारे देश कई क्षेत्रों में जीवंत साझेदारी भी करते हैं. भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और थाईलैंड की ‘एक्ट वेस्ट’ नीति एक-दूसरे की पूरक हैं, जो आपसी प्रगति और समृद्धि को बढ़ावा देती हैं. यह सम्मेलन हमारी मित्रता में एक और सफल अध्याय है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संवाद का विषय एशियाई शताब्दी की बात करता है. जब लोग इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो वे अक्सर एशिया के आर्थिक उत्थान का उल्लेख करते हैं. हालांकि, यह सम्मेलन इस बात पर प्रकाश डालता है कि एशियाई शताब्दी केवल आर्थिक मूल्य के बारे में नहीं है, बल्कि सामाजिक मूल्यों के बारे में भी है. प्रधानमंत्री ने कहा कि भगवान बुद्ध की शिक्षाएं दुनिया को एक शांतिपूर्ण और प्रगतिशील युग बनाने में मार्गदर्शन कर सकती हैं. उनका ज्ञान हमें मानव-केंद्रित भविष्य की ओर ले जाने की शक्ति रखता है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संवाद का एक मुख्य विषय है संघर्ष से बचना. अक्सर, संघर्ष इस विश्वास से उत्पन्न होते हैं कि केवल हमारा मार्ग ही सही है जबकि अन्य सभी गलत हैं. भगवान बुद्ध इस मुद्दे पर अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं: ‘इमेसु किर सज्जन्ति, एके समणब्राह्मणा/ विग्गय्ह नं विवदन्ति, जना एकंगदस्सिनो.’ इसका अभिप्राय यह है कि कुछ लोग अपने ही विचारों पर अडिग रहते हैं और बहस करते हैं, सिर्फ़ एक पक्ष को ही सही मानते हैं लेकिन एक ही मुद्दे पर कई दृष्टिकोण हो सकते हैं. यही कारण है कि ऋग्वेद में कहा गया है: ‘एकं सद्विप्रा बहु॒धा वदन्ति.’ जब हम यह स्वीकार करते हैं कि सत्य को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है, तो हम संघर्ष से बच सकते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संघर्ष का एक और कारण दूसरों को खुद से मौलिक रूप से अलग समझना है. मतभेद दूरियों को जन्म देते हैं, और दूरियां कलह में बदल सकती हैं. इसका मुकाबला करने के लिए, धम्मपद की एक पंक्ति कहती है: ‘सब्बे तसन्ति दण्डस्स, सब्बे भयन्ति माचुनो/ अत्तानं उपमं कत्वा, न हनेय न घटये.’ इसका अर्थ यह है कि हर कोई दर्द और मृत्यु से डरता है. दूसरों को अपने जैसा समझकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कोई नुकसान या हिंसा न हो. अगर इन शब्दों का पालन किया जाए तो संघर्ष से बचा जा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि दुनिया के कई मुद्दे संतुलित दृष्टिकोण के बजाय अतिवादी रुख अपनाने से उत्पन्न होते हैं. अतिवादी दृष्टिकोण संघर्ष, पर्यावरण संकट और यहां तक कि तनाव से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देते हैं. ऐसी चुनौतियों का समाधान भगवान बुद्ध की शिक्षाओं में निहित है. उन्होंने हमें मध्यम मार्ग अपनाने और अतिवाद से बचने का आग्रह किया. संयम का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और वैश्विक चुनौतियों से निपटने में मार्गदर्शन प्रदान करता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि संघर्ष लोगों और राष्ट्रों से आगे बढ़ रहे हैं- मानवता प्रकृति के साथ संघर्ष में तेजी से बढ़ रही है. इससे पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया है जो हमारी पृथ्वी के लिए खतरा बन गया है. इस चुनौती का जवाब एशिया की साझा परंपराओं में निहित है, जो धम्म के सिद्धांतों में निहित है. हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, शिंटोवाद और अन्य एशियाई परंपराएं हमें प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना सिखाती हैं. हम खुद को प्रकृति से अलग नहीं बल्कि उसका एक हिस्सा मानते हैं. हम महात्मा गांधी द्वारा समर्थित ट्रस्टीशिप की अवधारणा में विश्वास करते हैं. आज प्रगति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय, हमें भविष्य की पीढ़ियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पर भी विचार करना चाहिए. यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का उपयोग विकास के लिए किया जाए, लालच के लिए नहीं.