आधी आबादी के साहित्य लेखन में ही घर-बाहर की सजीव अभिव्यक्ति

– संवादी के मंच से महिला साहित्यकारों का संदेश, विचारों को अभिव्यक्त जरूर करें

– इंटरनेट मीडिया को सराहा, लेकिन इसकी सामग्री की गुणवत्ता पर चिंता भी जताई

संदीप जागरण

पटना : पहले महिलाएं घर की देहरी में होती थीं, अब घर के साथ बाहर भी सशक्त भूमिकाओं का निर्वहन करती हैं। यह बदलाव आधी आबादी के साहित्य लेखन में भी परिलक्षित हो रहा। चौखट के अंदर के पात्रों और कहानियों से आगे अब महिला साहित्यकार अपनी रचनाओं में दमदार तरीके से बाहरी दुनिया की सजीवता समेटती हैं। यही विशिष्टता साहित्य की दुनिया में महिलाओं की पसंद की खास वजह बन रही। यह सुखद संकेत है। अभी इंटरनेट मीडिया पर जो लिखा जा रहा, उसे बहुत ही करीने से छांटकर सृजनात्मक लेखों को सहेजने-ग्रहण करने की आवश्यकता है। यहां ज्यादातर सामग्री कूड़ा है। इसमें से ही हमें हीरा चुनना होगा।

आधी आबादी का साहित्य विषय पर संवादी के मंच पर आमंत्रित थीं साहित्यकार वीणा ठाकुर, प्रत्यक्षा और इरा टाक। वीणा अमृत ने इनका परिचय कराते हुए सवाल किया कि आज साहित्य की दुनिया में आ रहे बदलाव को परिभाषित करिए। वीणा ठाकुर ने कहा, पूर्व के मुकाबले अब महिलाएं अधिक शिक्षित हैं। उन्हें ज्यादा अधिकार प्राप्त हैं। वे मुखर हैं। इसलिए महिलाओं का साहित्य आज करवट ले रहा है। वर्तमान दौर में यह सबसे सशक्त माध्यम है, जहां वह अपना मर्म खुलकर व्यक्त कर सकती हैं। आज 370 भाषाएं-बोलियां मरणासन्न हैं। सो, साहित्यकारों का नैतिक दायित्व होना चाहिए कि वे इसकी गंभीर चिंता करें।

प्रत्यक्षा ने संवाद आगे बढ़ाते हुए कहा, यह बहुत सुखद है कि आधी आबादी की लेखनी ने ही उस पुल का निर्माण किया जो साहित्य में बाहर और भीतर के अंतर को पाटने की क्षमता रखता है। कहा, लेखक आसपास की दुनिया देखकर एक नजरिया देता है, क्रांति करना उसका काम नहीं। मंच की कमान संभालते हुए इरा टाक ने कहा, वैसे लेखक का कोई जेंडर नहीं होता है। होना भी नहीं चाहिए। साहित्य को उन्होंने मरहम बताते हुए कहा, यह भावनाओं को व्यक्त करने का शानदार माध्यम है। जो लोग अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते वे बीमार पड़ जाते हैं। आग्रह किया कि अगर किसी को बोलने में झिझक हो तो अपनी भावनाओं को लेखनी के माध्यम से व्यक्त करे। उसकी पीड़ा कम होगी। उन्होंने मेडिकल साइंस का भी हवाला दिया।

इंटरनेट मीडिया पर दमदार बहस :

वीणा अमृत ने बिहार का जिक्र करते हुए कहा, यहां महिलाओं की रचनाशीलता दब जाती है। उन्हें उचित मंच नहीं मिल पाता। इंटरनेट मीडिया को एक समाधान बताते हुए प्रत्यक्षा और इरा टाक ने कहा, महिलाएं यहां लिखें। वे लिख भी रही हैं। यहां कोई रोक-टोक नहीं। कोई एडिटर नहीं। बंदिश नहीं। आप अपने विचारों को स्वछंद तरीके से यहां रख सकती हैं। इंटरनेट मीडिया की बढ़ती तरफदारी पर वीणा ठाकुर ने अल्पविराम लगाया, कहा- यह अभिव्यक्ति का एक माध्यम तो हो सकता है लेकिन, साहित्य सृजन का यह उचित मंच नहीं। मन के विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए एकांत जरूरी है, फौरी तौर पर अपने मन की बात कहने के लिए इंटरनेट मीडिया तो ठीक है, लेकिन साहित्य लिखना है तो सोचिए-समझिए, एकांतवास करिए। तब साहित्य सृजन करिए। इरा ने इतर दृष्टिकोण रखते हुए कहा, लिखने से रोकना नहीं चाहिए। कहीं भी लिखें। वीणा ने भी सहमति जताते हुए तर्क रखा कि कैसे कोरोना काल में इंटरनेट मीडिया ही अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बना। यहां लोगों ने खूब लिखा, अपनी सृजनशीलता दिखाई। विमर्श का दौर चलता रहा। अपने-अपने तर्क और वितर्क भी। प्रत्यक्षा ने विमर्श का अंत यह कहते हुए किया कि कोई भी आविष्कार दोधारी तलवार है। यह आज से कुछ वर्षों बाद पता चलेगा कि इंटरनेट मीडिया ने साहित्य को नुकसान पहुंचाया या लाभ। हालांकि मंच के वक्ता इस बात से पूरी तरह सम्मत थे कि अभी इंटरनेट मीडिया पर ज्यादातर सामग्री कूड़ा है। इस कूड़े से हीरा चुनना कठिन कार्य है, हमें सावधानी पूर्वक यह कार्य करना चाहिए। इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत में दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक आलोक मिश्र और साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र ओढ़ाकर किया।