फिल्मों में नहीं होते जावेद तो बनते बड़े चिंतक
पांचवां सत्र
जासं, पटना : गीतकार, शायर, संवाद लेखक व पद्मविभूषण जावेद अख्तर पर बातचीत शुरू हुई तो उनके व्यक्तित्व का दर्शन शब्दों से बयां किया गया। बिहार संवादी के पांचवें सत्र में अख्तर की जिंदगी पर लिखी पुस्तक जादूनामा का जादू श्रोताओं पर खूब चला। पुस्तक के लेखक अरविंद मंडलोई, उपन्यासकार नवीन चौधरी व वरिष्ठ पत्रकार कुमार रजत के बीच संवाद का सिलसिला चलता रहा। पुस्तक में जावेद के जीवन से जुड़ी घटनाओं का जिक्र होने के साथ बचपन और जवानी व खोए पाए सभी दोस्तों को एकत्रित कर दिया गया है। जावेद को एक सिर्फ एक पुस्तक में बांधना ठीक नहीं। मंडलुई अख्तर को नास्तिक बताते हैं इसके बावजूद वे सभी धर्मों का सम्मान करते नजर आते हैं। वे मुस्लिम परिवारों से मिलते हैं और कहते हैं मुस्लिम परिवार के बच्चों के नाम में ओबामा आता है। ऐसे नाम नहीं रखने को प्रेरित करते हैं। जिंदगी के फलसफा ऐसे हैं कि पुस्तक उनकी पत्नी शबाना आजमी को समर्पित है। पुस्तक लिखने की प्रेरणा जावेद अख्तर से मिली। अख्तर अपनी विरासत परंपरा को आगे बढ़ाते रहे हैं। अख्तर के जीवन से जुड़े कई प्रसंग पुस्तक के जरिए एक-एक कर श्रोताओं के सामने आते रहे। मंडलोई अख्तर के व्यक्तित्व पर कहते हैं कि अख्तर साहब को फिल्मों में नहीं लगाया होता तो वे बड़े सामाजिक चिंतक, समाज सुधारक होते। अख्तर कानून के भले ही जानकर नहीं रहे, परंतु इसके लिए लोगों को एकत्र कार्य करते रहे। अख्तर के जीवन से जुड़े रोचक प्रसंगों पर संवाद होने के साथ उनकी रचनाएं जिधर जाते हैं सब जाना, उधर अच्छा नहीं लगता… डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से, लेकिन एक सफर पर ए दिल अब जाना तो होगा.. शेर-ओ-शायरी के साथ श्रोता सत्र का आनंद उठाते रहे।