दीपाली ने संवादी पर चढ़ाया बिहार का लोक रंग

जागरण संवाददाता, पटना : साहित्य, राजनीति, रंगमंच, सिनेमा से सजे दो दिवसीय बिहार संवादी कार्यक्रम का समापन लोक गीतों से संपन्न हुआ। तारामंडल के सुशोभित मंच पर लोक गायिका दीपाली सहाय अपनी टीम के साथ श्रोताओं को आनंदित करती रहीं। गायिका ने गीतों के जरिए लोक संस्कृति की झलक, मां गंगा को नमन के बाद पुरबी सम्राट कवि महेंद्र मिसिर की रचनाओं के साथ श्रोताओं को संवादी कार्यक्रम से जोड़े रखा। मंच पर माइक संभाला तो पीछे से संगत कलाकारों ने धुन बजा कर कार्यक्रम को आरंभ करने का संकेत दिया। मधुर आवाज व भोजपुरी की मिठास में श्रोता कार्यक्रम के अंत तक बंधे रहे। सत्र का आरंभ बन जइया बन के जोगिनया हो राम.. से हुआ तो श्रोता और कलाकार मानो एक साथ संवाद करते नजर आए।  गायिका ने मां गंगा को नमन करते हुए भोजपुरी फिल्म हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो, सइयां से कर दे मिलनवा हमार… गीत के जरिए भोजपुरी की महत्ता व गीतों की मिठास से परिचय कराया। गीतों के क्रम को आगे बढ़ाते हुए कलाकार पुरबी गीतों के सम्राट कहे जाने वाले महेंद्र मिसिर की रचना को जब सुर और ताल में समाहित किया गया तो धुन को सुन सभी मग्न रहे। अंगुरी में डसले बिया नगिनिया.. विरह गीत के जरिए पत्नी की मनोदशा का बयां कर श्रोताओं का दिल जीता। भाई- बहनों के प्रेम से जुड़े गीत जब मंच पर प्रस्तुत हुए तो दीपाली के साथ श्रोता भावुक हुए। इस दौरान तोहरा के लागे भईया हमरी उमरिया.. गीत जब साझा हुए तो दर्शकों ने तालियों के साथ कलाकारों का सम्मान किया। भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर को नमन करते हुए दीपाली ने हम त खेलत रहनी अम्माजी के गोदिया कर गइल तबहि बिआह रे बिदेसिया, अब हम कइसे चली डगरिया लोगवा नजर लगावेला..के साथ संवादी कार्यक्रम में आए लोग इस पल का साक्षी बने।