साहित्य हो या राजनीति, जड़ों से जुड़ना ही होगा

– सामने आया बड़ा निष्कर्ष-एजेंडे के साहित्य ने पाठकों को साहित्य से दूर किया, आम आदमी के मुद्दों पर लिखेंगे तो पढ़े जाएंगे

– दैनिक जागरण के बिहार संवादी में विभिन्न सत्रों में साहित्य, राजनीति, समाज, इंटरनेट मीडिया, सिनेमा और संस्कृति पर हुई चर्चा

प्रमोद कुमार सिंह, जागरण

पटना : दैनिक जागरण के तत्वावधान में आयोजित बिहार संवादी के दूसरे दिन रविवार को विभिन्न सत्रों में विमर्श की धार तेज रही। वक्ता और श्रोता एक दूसरे से जुड़ते गए। संवाद विस्तार पाता गया, रोमांच बढ़ता गया, विचारों के प्रवाह से निष्कर्ष का मार्ग प्रशस्त होता गया। अधिकतर वक्ताओं का मानना था कि संवाद बिहार की जड़ में है।

बातें आधी आबादी से शुरू होकर साहित्य के गोलमेज तक आई। फिर रील के बिहारी सितारों ने अपनी संघर्ष यात्रा को श्रोताओं से साझा किया। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट विजन पर बिहारी होने के गौरव बोध को स्पष्ट करते नजर आए। संवाद यात्रा में इससे पहले विधायक प्रतिमा दास इसे दृढ़ता से रेखांकित करती दिखीं कि महिला आरक्षण पर बातें तो होती हैं, पर पार्टियों को इस पर अमल भी करना होगा। बात साहित्य, राजनीति, समाज, इंटरनेट मीडिया से लेकर सिनेमा और संस्कृति तक की हुई।

‘साहित्य की आधी आबादी’ सत्र में यह बात उभर कर आई कि अब औरतों ने ना कहना सीख लिया है। साथ ही इंटरनेट मीडिया पर दखल बढ़ी है, लेकिन इस बात को लेकर चिंता जताई गई कि इस प्लेटफार्म की तीस प्रतिशत सामग्री ही रचनात्मकता के दृष्टिकोण से सही है। इस सत्र में साहित्यकार वीणा ठाकुर, उपन्यासकार प्रत्यक्षा और कथाकार इरा टाक से लेखिका वीणा अमृत ने बातचीत की। ‘साहित्य का गोलमेज’ सत्र में आलोचक इंदुशेखर तत्पुरुष, उपन्यासकार रत्नेश्वर और सर्वेश तिवारी से दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय के संवाद में निष्कर्ष सामने आया कि साहित्यकारों ने विचारधारा के नाम पर सबसे अधिक साहित्य का गला घोंटा है। यात्रा ‘बिहार के रील के सितारे’ पर पहुंची तो मिंटुआ, सौरभ और आरजे अंजलि की बातों में अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति आग्रह था। बात फिर बिहार की आधी आबादी की नई पीढ़ी पर पहुंची तो नेशनल शूटर और विधायक श्रेयसी सिंह ने इसको दृढ़ता से रखा कि अब पहले की अपेक्षा परिवर्तन है, पर साधन-संसाधन के साथ सोच के स्तर को भी उठाना होगा। पटना सबरंग सत्र में पूर्व मुख्य सचिव वीएस दुबे, पूर्व डीजीपी अभयानंद और लेखक अरुण सिंह ने शहर में हो रहे बदलाव पर चर्चा की। पुराने पटना और नए विकसित हो रहे पटना के बीच वक्ताओं के संस्मरण युवा श्रोताओं को स्पंदित कर गए। सांस्कृतिकी को स्वर देने वाले सत्र ‘बचेगी तो त्रिपाठी ही’ में अभिनेत्री श्वेता त्रिपाठी ने अभिनय के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। वहीं गायिका दीपाली सहाय की प्रस्तुति ने विमर्श में आनंद रस घोला।