नई दिल्लीः देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी पुण्यतिथि पर पिछले सालों की तुलना में इस साल कुछ अधिक याद किए गए. वह भी सियासतदानों द्वारा कम, लेखक, पत्रकार व साहित्यकारों द्वारा अधिक. लॉकडाउन के दौर में सोशल मीडिया नेहरू को याद करने का बड़ा मंच बना. इसकी वजह शायद पंडित नेहरू का लेखन से वास्ता रहा है. कहा जाता है कि नेहरू अगर प्रधानमंत्री न होते, तो भी यह विश्व उन्हें एक महान लेखक के रूप में याद रखता. नेहरू एक ऐसे लेखक थे, जिनकी इतिहास दृष्टि ने इस देश को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया. भारत के इतिहास में पंडित नेहरू के सियासती, सामाजिक ही नहीं लेखकीय योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. तमाम पत्रकारों और लेखकों के बीच वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने सोशल मीडिया पर पंडित नेहरू को कई टिप्पणियों और एक फोटो के साथ याद किया है. फोटो पर उन्होंने लिखा है, सन 1962 के यूथ फेस्टिवल में दिल्ली विश्वविद्यालय की टीम के साथ पंडित नेहरू के तीन मूर्ति आवास पर. तब मैं एम ए इंग्लिश की छात्र थी.
इसके अलावा  ममता कालिया ने नेहरूजी की अंत्येष्टि पर अपनी यादें इन शब्दों में साझा की हैं, “आज यादें 27 के बाद 28 मई में चल रही हैं. इस दिन नेहरूजी की अंत्येष्टि थी. जैसे आज लॉकडाउन में हम सब निस्पंद पड़े हैं, उस दिन नेहरूजी के शोक में देश निस्पंद था. कैलाश वाजपेयी शक्तिनगर में हमारे पड़ोस में रहते थे. उन्होंने तय किया हम चारों साथ चलेंगे, पापा, मम्मी, मैं और कैलाशजी. दोपहर 12 बजे की खड़ी धूप में हमने बस पकड़ी और राजघाट के समीप शांति स्थल की तरफ चले. धूप, धुएं और धधकते सामूहिक शोक में शामिल हो हम सब भी बुरी तरह क्लांत हो, वहीं मैदान में बैठ गए. प्यास से बेकाबू थे. किसी तरह कहीं से तरबूज की फांकें कटवा कर कैलाशजी लाये कि प्यास बुझाई जाए. तभी मम्मी को चक्कर आ गया. उनको बेहोशी आने लगी. कोई उपचार वहां उपलब्ध नहीं था. वहां से कुछ दूर पर दरियागंज में तब कवि इंदु जैन रहा करती थीं. रिक्शों में हम सब मम्मी को लेकर उनके घर आये. कैलाश वाजपेयी का उनसे अच्छा परिचय था. उन्होंने नर्स की फुर्ती से मम्मी को नींबू पानी बना कर पिलाया और बाकी हम सब के लिए चाय और जलपान की तैयारी की. उनके बेडरूम में बिस्तर के पायताने छोटे छोटे हसीन कैक्टस उगे हुए थे. मैंने एक बार कहीं पढ़ा था कि कमरे में कैक्टस नहीं लगाना चाहिए, किन्तु यह बात मैंने इंदुजी से नहीं कही. आज भी नेहरूजी के अवसान के साथ यह सब याद आ जाता है.