मुरादाबादः नगर की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' ने सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के आवास पर काव्य-ठिठोली का आयोजन किया, जिसमें उपस्थित कवियों ने फागुन की मस्ती और होली के माहौल से संबंधित हास्य कविताओं से न केवल उपस्थित श्रोताओं को गुदगुदाया बल्कि देश व समाज में व्याप्त विसंगतियों पर कटाक्ष भी किए. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हास्य व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने की, मुख्य अतिथि कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय थीं, तो संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया. इस अवसर पर नवगीतकार व यशभारती से सम्मानित माहेश्वर तिवारी ने सुनाया, 'बौरी है आमों की डाल, गीत फूटे फागुन के, दिन फूलों के रंग चुराये, फिरते सारे अंग सजाये, होरी मचाए धमाल, गीत फूटे फागुन के.' हास्य-व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता थी, 'सच को सच कहने में, उसके भीतर रहने में, अधिकतर डर लगता है, कब्जे में हो झूठ के जैसे, अब तो सारा घर लगता है.'

इस कार्यक्रम में योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने गीत प्रस्तुत किया, 'तुझमें रंग भरे जीवन के, मुझमें भरी मिठास, चल मिलकर वापस लाते हैं, रिश्तों में उल्लास, अपनेपन के गाढ़े रंग से, रचें नई रंगोली.' कवयित्री विशाखा तिवारी की कविता के बोल थे, 'सुनो शायद आ गए ऋतुराज, पहने हुए पीले फूलों का ताज, स्वागत को तैयार है पूरी धरती.' डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया, 'आचरण की गंध से कर दें सुवासित यह धरा, नित बहे अंत:करण में प्राणदायिनी निर्झरा.' डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा, 'स्वाभिमान भी गिरवीं रख नागों के हाथ, भेड़ियों के सम्मुख टिका दिया माथ, इस तरह होता रहा अपना चीरहरण.' शायर ज़िया ज़मीर की ग़ज़ल थी, 'जिंदगी रोक के अक्सर यही कहती है मुझे, तुझको जाना था किधर और किधर आ गया है.' निवेदिता सक्सेना ने सुनाया, 'बस तुमसे मुलाकात का मौसम नहीं आया, बिछड़े हैं जबसे साथ का मौसम नहीं आया. इस काव्य गोष्ठी में शिखा रस्तोगी, राधेश्याम तबलावादक, आशा तिवारी, आयुष आदि सहित नगर के तमाम साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे.