गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संवाद भवन में साहित्य अकादमी नई दिल्ली और हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में 'भक्ति साहित्य एवं भारतीय समाज' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी चल रही है. संगोष्ठी के पहले दिन दो सत्र हुए. पहला सत्र 'भक्ति साहित्य की पृष्ठभूमि' विषय पर था तो दूसरा सत्र 'भक्ति साहित्य – लोक और शास्त्र' विषय पर. संगोष्ठी की शुरुआत में साहित्य अकादमी के हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक प्रोफेसर चितरंजन मिश्र ने कहा कि आज की दुनिया तेजी से कूड़ा होती जा रही है. दस साल पहले की टेक्नोलॉजी दस साल बाद किसी काम की नहीं रह जाती, जबकि शब्द की दुनिया हजारों साल बाद भी काम की रहेगी. अक्षर हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं. कबीर के जमाने की चीजें भले ही काम की नहीं हैं, लेकिन तुलसी, सूर, कबीर, जायसी की कविता सैकड़ों वर्षो बाद भी हमारे काम की हैं और आगे भी रहेंगी. मिश्र का कहना था कि भक्ति आंदोलन अखिल भारतीय था. भक्तिकाल ईश्वर की अवधारणाओं के पुनर्विष्कार का काल है. संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर वीके सिंह ने कहा कि भक्ति साहित्य हमें प्रेरणा देता है. आज का भौतिकवादी युग परिवार व समाज को अलग थलग कर दिया है. हमें संत साहित्य व संतों द्वारा बताए रास्ते पर चलकर ही देश और समाज को सुंदर बनाना होगा. प्रोफेसर केसी लाल ने कहा कि भक्ति साहित्य ऐसा साहित्य है जहां सब के लिए बातें हैं. भक्ति साहित्य का अध्ययन करते समय हमें सम्यक बोध की जरूरत है. प्रोफेसर जनार्दन ने कहा कि धर्म के नाम पर बनने वाली कुछ चीजें बनाती हैं तो बिगाड़ती भी हैं. पर्वतीय विश्वविद्यालय शिलांग के प्रो दिनेश कुमार चौबे ने बताया कि उनके यहां शंकर देव की प्रतिष्ठा तुलसी, कबीर से अधिक है. इस सत्र का संयोजन एवं संचालन रामदरश राय ने किया.

भक्ति साहित्य- लोक व शास्त्र विषय पर द्वितीय सत्र में बोलते हुए आचार्य अनंत मिश्र ने कहा कि कविता और सत्ता एक दूसरे के विपरीत होते हैं. साहित्य हमेशा से प्यार के पक्ष में रहा है, जबकि सत्ताएं कठोरता के पक्ष में रही हैं. उन्होंने कहा कि आंधियों में पेड़ उखड़ जाते हैं, दूब बची रहती है. भक्ति काल की कविता दूब के समान आज भी बची हुई है. उन्होंने लोक व शास्त्र की चर्चा करते हुए कहा कि लोक के गर्भ से ही शास्त्र व सभ्यता का जन्म हुआ होगा.  समय बदलता है तो शास्त्र भी बदलता है. आज हम बाहर से समृद्ध हो रहे हैं और अंदर से विपन्न बनते जा रहे हैं. लोक से शास्त्र है, शास्त्र से लोक नहीं. डॉक्टर बजरंग बिहारी तिवारी का कहना था कि लोक और वेद का अनुमोदन भक्ति कविता में होता है. भक्ति काल की कविता न्याय के सवाल को खड़ा करती है. गोरखपुर विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के आचार्य रहीं प्रोफ़ेसर मंजू त्रिपाठी ने तुलसीदास और उनके रामचरितमानस को समाज के लिए उपयोगी साहित्य बताया. अतिथियों का स्वागत हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर अनिल कुमार राय, संचालन प्रोफ़ेसर विमलेश कुमार मिश्र तथा आभार ज्ञापन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया. संगोष्ठी में छात्र छात्राओं सहित विभिन्न विद्वान, शिक्षक, रंगकर्मी, साहित्यकार और शहर के गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति रही.