बिल्सी: यज्ञ तीर्थ गुधनी में चल रहे यज्ञ महोत्सव के दौरान एक कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ. सबसे पहले वैदिक आचार्य संजीव रूप के निर्देशन में प्रार्थना हुई. डा अंजू सिंह ने .सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. फिर उन्होंने बेटियों को सावधान करते हुए कविता पढ़ी, “दिल के बंधन से निकल कर करना, मत किसी सोच में ढलकर करना, कुछ दरिन्दे तुम्हें लुभाएंगे लड़कियों, प्यार संभाल कर करना..’ वेद प्रकाश मणी ने राष्ट्रभक्ति गीत सुनाया, जिसके बोल थे, ‘अमर वीरों का बलिदान अभिमान तिरंगा,
मां भारती की आरती सम्मान तिरंगा, झुकने न देंगे आन बान शान तिरंगा…’ प्रवीण राही ने भी राष्ट्रभक्ति की ही भावना को आगे बढ़ाते हुए पढ़ा, ‘जो बंदे इधर से उधर जा रहे थे सब, अब मैंने पूछा तो हकला रहे थे, करें गर्व कैसे ना उन सैनिकों पर, तिरंगे में लिपटे जो घर जा रहे थे…’ डा उपदेश शंखधार ने कई मुक्तक सुनाए, जो यों थे, ‘जिसे सुनकर देशभक्ति मन में न जगे, ऐसी हो कहानी तो कहानी किस काम की, जो न निज देश और धर्म हेतु भर रुके, ऐसे आदमी की जिंदगानी किस काम की…’
कार्यक्रम में हास्य कवि लटूरी लट्ठ ने पढ़ा, ‘वह हिंदी के दम सारी दुनिया डोल लेता है, अंग्रेजी तो पउआ पीकर भी बोल लेता है…’ सुरेंद्र सुमन के गीत के बोल थे, ‘जीवन चाहे मिट जाए लाज नहीं जाने दूंगी, चित्तौड़ धरा के वीरों का अभिमान नहीं जाने दूंगी…’ डा जयप्रकाश मिश्रा ने हास्य कविताएं सुनाई, ‘ढली है चांदनी लेकिन सितारे और बाकी हैं, अभी जल्दी कहां की है नजारे और बाकी हैं. सफेदी देख बालों की बुढ़ापा मत समझ लेना, बुझी है आज बाहर से अंगारे और बाकी हैं…’ अध्यक्षता कर रहे गीतकार नरेंद्र गरल ने सुनाया, ‘सदाचार से जग जीता जा सकता है, बालक ध्रुव बनकर ईश्वर पा सकता है. जिसे रतन पा लेने की बेचैनी है, वहीं ढूंढ कर कोहिनूर ला सकता है.’ संचालक आचार्य संजीव रूप ने कई गीत सुनाए. जिसमें एक था, ‘जो लुट गया है उसे सारे थूकते हैं यहां, जो लूट लाया उसे सारे पूजते हैं यहां…’ देर रात तक चले कवि सम्मेलन में भारी संख्या में कविता प्रेमी श्रोता डटे रहे.