आशुतोष मिश्र जागरण गोरखपुर: जिस चुंबकीय वाणी का आकर्षण देशभर के बहुसंख्यक हिंदीभाषियों में हैवह संवादी के मंच से मुखरित हुई तो योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह का सभागार सम्मोहित भाव से सुनने में जुट गया। ‘हिंदी और राष्ट्रवाद’ पर मार्गदर्शक विचार रखते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहजता से संवाद के कौशलशब्द चयन और इसकी शक्ति से परिचित कराते हुए सबको उर्जित कर गए। इस तरह संवादी के दूसरे दिन की भव्य शुरुआत हुईजो ‘हाशिए पर सिंधी साहित्य’ की चर्चा से आगे बढ़ी। अपनी भाषा हिंदी की समृद्धि को समर्पित दैनिक जागरण के अभियान ‘हिंदी हैं हम’ के तहत इस आयोजन में सिंधी के बाद भोजपुरी का संगम हुआ तो साहित्य सरिता की त्रिवेणी के साथ विचारों का महाकुंभ साकार हो उठा। विचारों के इस मेले में ‘हिंदी बेस्ट सेलर’ के हस्ताक्षर श्रोताओं के सम्मुख हुएतो बात आई कि साहित्य सीमा में बांधने का विषय नहींइसमें सभी का समावेश जरूरी है। उपन्यासकार नवीन चौधरीसाहित्यकार भगवंत अनमोल और विनीता अस्थाना के विचार मंथन का सार रहा कि विविधता जितना अधिक होगीपुस्तक उतनी ही पसंद की जाएगी। राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद के निदेशक प्रो.रविप्रकाश टेकचंदाणी और उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी के निदेशक अभिषेक कुमार ‘अखिल’ के बीच ‘हाशिए पर सिंधी साहित्य’ पर चर्चा में विभाजन की पीड़ा सहेजे सिंधी बोली का सुखद पक्ष भी उभरा। ‘संविधान और जाति व्यवस्था’ पर मंथन में विद्वानों ने माना कि जातियों का बंधन तोड़ने के लिए समता मूलक व समावेशी समाज जरूरी है। इस सत्र के बाद गंभीर मंथन सांसद मनोज तिवारी के आगमन के साथ चुटीलेपन का पुट पा गया। फहरात रहे भोजपुरी का भाव दीर्घा में उपस्थित श्रोताओं के मन पर छा गया। रिंकिया के पापा…हटत नइखे भसुरा… जैसे अपने गीत गुनगुनाकर मनोज तिवारी श्रोताओं को गुदगुदाने-हंसाने के साथ भोजपुरी के विकास और उसके अधिकार को लेकर गंभीर बातें कर गए। सांसद रविकिशन शुक्ल के हवाले से ‘भोजपुरी का सफर आस्कर तक’ देखकर सभागार में उपस्थित हर व्यक्ति अपनी बोली के प्रति गर्व से भर गया। संवादी ने ‘रफी का शताब्दी वर्ष’ भी मनायाजिसे पंकज कुमार ने उनके तरानों से सजाया। साहित्यकार यतीद्र मिश्र ने किशोर और नौशाद संग उनके संबंधों के रोचक किस्से सुनाएतो वहीं युनुस खान हृदय को छूने वाली आवाज के साथ रफी के संघर्षों की जानकारी देकर श्रोताओं को भावुक कर देते हैं। साहित्यकला और समाज के विविध रंगों से सजा संवादी का मंच अब विश्राम पाता हैलेकिन अगले वर्ष फिर ऐसे ही सुखद अनुभूति का माध्यम बनने का भरोसा दे जाता है।