नई दिल्ली: “हमारा संविधान, हमारे लोकतांत्रिक गणतंत्र की सुदृढ़ आधारशिला है. हमारा संविधान, हमारे सामूहिक और व्यक्तिगत स्वाभिमान को सुनिश्चित करता है.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संविधान दिवस के अवसर पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित विशेष समारोह में यह बात कही. उन्होंने कहा कि संविधान-सदन के इसी केंद्रीय कक्ष में संविधान-सभा ने नव-स्वाधीन देश के लिए संविधान-निर्माण का बहुत बड़ा कार्य सम्पन्न किया था. उस दिन, संविधान-सभा के माध्यम से हम भारत के लोगों ने, इस संविधान को अपनाया, अधिनियमित किया और आत्मार्पित किया था. राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान-सभा के अध्यक्ष डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने तथा प्रारूप समिति के अध्यक्ष डाक्टर बाबासाहब आंबेडकर ने संविधान-निर्माण की यात्रा का मार्गदर्शन किया. बाबासाहब की प्रगतिशील और समावेशी सोच की छाप हमारे संविधान पर अंकित है. संविधान-सभा में उनके ऐतिहासिक संबोधनों से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि भारत, लोकतंत्र की जननी है. अपने लोकतंत्र पर गौरव की इसी भावना के साथ आज हम सब इस विशेष अवसर पर एकत्र हुए हैं. यह अवसर संविधान-सभा की पंद्रह महिला सदस्यों के योगदान को स्मरण करने का भी है. राष्ट्रपति ने कहा कि हमें उन अधिकारियों के अमूल्य योगदान को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने नेपथ्य में रहकर काम किया. उनकी कार्यनिष्ठा ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया को सुचारु रूप से आगे बढ़ाया. उनमें प्रमुख भूमिका बीएन राव की थी जो संविधान-सभा के संवैधानिक सलाहकार थे. मैं संविधान-सभा के सचिव एचवीआर आयंगर, संयुक्त सचिव एसएन मुखर्जी और उप-सचिव जुगल किशोर खन्ना का भी उल्लेख करना चाहूंगी. राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे स्वाधीनता संग्राम के दौरान, अनेक महान विभूतियों ने, हमारे राष्ट्रीय आदर्शों को रेखांकित किया था. हमारी संविधान-सभा में हमारे देश की विविधता को अभिव्यक्ति मिली थी. संविधान-सभा में सभी प्रान्तों और क्षेत्रों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति से, अखिल भारतीय चेतना को स्वर मिला था.
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि कहा कि संविधान-सभा के वाद-विवाद तथा सदस्यों के संबोधनों में हमें संविधान निर्माण की प्रक्रिया के साथ-साथ अपने देश के बारे में गहरी जानकारी प्राप्त होती है. आज जिन पुस्तकों का विमोचन किया गया तथा जो लघु फिल्म दिखाई गई, उनसे लोगों को हमारे संविधान निर्माण के गौरवशाली इतिहास का परिचय प्राप्त होगा. राष्ट्रपति ने कहा कि एक अर्थ में भारत का संविधान कुछ महानतम मेधावी लोगों द्वारा लगभग तीन वर्षों के विचार-विमर्श का परिणाम था. लेकिन सही अर्थों में यह हमारे लंबे स्वाधीनता संग्राम का परिणाम था. उस अतुलनीय राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों को संविधान में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया. उन आदर्शों को, सुस्पष्ट और संक्षिप्त रूप से संविधान की प्रस्तावना में व्यक्त किया गया है. वे आदर्श हैं – न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता. ये आदर्श सदियों से भारत को परिभाषित करते रहे हैं. राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान की भावना के अनुसार कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका का यह दायित्व है कि वे सामान्य लोगों के जीवन को सुगम बनाने के लिए मिलजुल कर काम करें. राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान एक जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज है. बदलते समय की मांग के अनुसार नए विचारों को अपनाने की व्यवस्था हमारे दूरदर्शी संविधान-निर्माताओं ने बनाई थी. हमने संविधान के माध्यम से सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के अनेक बड़े लक्ष्यों को प्राप्त किया है. नई सोच के साथ हम भारत को विश्व-समुदाय में नई पहचान दिला रहे हैं. हमारे संविधान-निर्माताओं ने भारत को अंतर-राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का निर्देश दिया है. आज एक अग्रणी अर्थ-व्यवस्था होने के साथ-साथ हमारा देश विश्व-बंधु के रूप में यह भूमिका बखूबी निभा रहा है. साथ ही, हम विश्व-समुदाय में उपलब्ध अच्छे विचारों और बदलावों को विनम्रता के साथ आत्मसात करने के लिए भी तत्पर रहते हैं. देश की जरूरतों के मुताबिक उत्कृष्ट विचारों और पद्धतियों को अपनाने की इसी भावना का उदाहरण हमारे संविधान-निर्माताओं ने प्रस्तुत किया था.