नई दिल्लीः साहित्य अकादमी का वार्षिक आयोजन 'साहित्योत्सव' जारी है. इस अवसर पर लेखक-सम्मिलन कार्यक्रम में साहित्य अकादमी पुरस्कार 2019 के विजेताओं ने अपने रचनात्मक अनुभवों को साझा किया, तो जिस प्रतिष्ठित संवत्सर व्याख्यान में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को पहुंचना था, वह अज्ञात कारणों से उनके न आने से फीका रहा. इस अवसर पर  प्रणव मुखर्जी द्वारा उपलब्ध कराए गए लिखित व्याख्यान का पाठ साहित्य अकादमी के अंग्रेज़ी परामर्श मंडल की संयोजक संयुक्ता दासगुप्ता ने किया. संवत्सर व्याख्यान का विषय था 'अर्थशास्त्र की चिरस्थायी विरासत'. इस अवसर पर नाट्य लेखन का वर्तमान परिदृश्य पर परिचर्चा का आयोजन भी हुआ. जिसका उद्घाटन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कार्यकारी अध्यक्ष अर्जुनदेव चारण ने किया. उन्होंने भारतीय नाट्य परंपरा का जिक्र करते हुए कहा कि कोई भी परंपरा अपने आपको वर्तमान में ढालने के लिए हमेशा सजग रहती है. पर नाट्य आलेखों में मनमाने बदलाव नहीं होने चाहिए. उन्होंने नाट्य निर्देशकों से अपील की कि शब्द नाटक का शरीर होते हैं अतः उनका सम्मान करना जरूरी है.
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि विभिन्न विधाओं के रंगकर्म उनके हृदय के अत्यंत निकट हैं. कोई भी रचना जब नए परिवेश के साथ दर्शकों के सामने प्रस्तुति होती है तो वह भी नई होकर वर्तमान का हिस्सा हो जाती है.  परिचर्चा के अगले सत्र में कृष्णा मनवल्ली की अध्यक्षता में मणिपुरी के अथोकपम खोलचंद्र सिंह, असमिया के सपनज्योति ठाकुर, मराठी के शफ़ाअत खान और सुमन कुमार ने हिंदी नाट्य लेखन के वर्तमान परिदृश्य पर अपने विचार रखे. शफ़ाअत खान ने कहा कि मराठी में नाट्य लेखकों की एक स्वस्थ परंपरा है, जो आज तक चली आ रही है. सपनज्योति ठाकुर ने असमिया के व्यावसायिक थियेटर का जिक्र करते हुए कहा कि हालांकि यह केवल मनोरंजन के लिए होता है लेकिन फिर भी इस कारण हमेशा नए नाटक उपलब्ध रहते हैं. सुमन कुमार ने कहा कि वे एक नाटक निर्देशक के रूप में नाट्य लेख में बदलाव को गलत नहीं मानते. कार्यक्रम के अंत में सभी का धन्यवाद देते हुए साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि साहित्य अकादमी नाटकों के अनुवाद एवं उनकी प्रस्तुति के लिए कई योजनाएं लागू कर रही है. कार्यक्रम का संचालन संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया.