मुंबई: कहते हैं चोरों का कोई ईमान नहीं होता… पर ऐसा नहीं है. साहित्य कैसे किसी को बदल देता है इसका एक वाकिआ हाल ही में महाराष्ट्र में घटा, जिसकी चर्चा चारों ओर है. हुआ दरअसल यह कि महाराष्ट्र में एक घर में चोरी हुई,
पर जैसे ही चोर को पता चला कि यह घर मराठी के एक कवि नारायण सुर्वे का है, उसने सारा सामान लौटा दिया.
चोर ने न केवल घर का सारा सामान लौटाया बल्कि माफीनामा भी छोड़ गया. आज के दौर में भले ही यह अकल्पनीय घटना लगे, लेकिन ऐसा सच में घटा है. बात रायगड़ के नेरल की है. वहां स्टेशन के पास ‘स्वानंद‘ सोसायटी में सेंध लगाकर एक चोर एक घर में घुसा. घर उस समय खाली था. परिवार के लोग बाहर गए थे. चोर ने दीवार पर टंगा महंगा एलईडी चुराया, फिर खाने-पीने की वस्तुएं तूर, चना, मूंग और मसूर आदि दालों के पैकेट, तेल, साबुन और चायपत्ती भी उठा ले गया. चूंकि घर में कोई नहीं था, इसलिए वह इत्मीनान से दूसरी बार भी चोरी करने के लिए उस घर में घुसा.
दूसरी बार जब वह चोरी कर रहा था, तो उसकी नजर उन अलमारियों पर पड़ी जिनमें पद्मश्री का सम्मानचिह्न, कई बड़े पुरस्कार/ सम्मान, उनकी ट्रॉफियां और दीवारों पर तस्वीरें टंगी थी. उन्हें ध्यान से देखने के बाद चोर को पता चला कि यह घर मराठी के मशहूर कवि नारायण सुर्वे का है.चोर ने सुर्वे की कविताएं पढ़ी थीं, इसलिए उसे बड़ी ग्लानि महसूस हुई. इसके बाद उसने न केवल चोरी का इरादा बल दिया, बल्कि टीवी सहित जो सामान वह ले गया था, उन्हें एक पन्ने पर माफीनामे के साथ लौटा गया. चोर ने उस नोट में लिखा- ‘मुझे मालूम नहीं था कि यह महान कवि नारायण सुर्वे का घर है. मालूम होता, तो चोरी नहीं करता. मैं एक-एक कर सारा सामान लौटा रहा हूं.‘
याद रहे कि कवि नारायण सुर्वे की बेटी सुजाता गणेश घारे यहीं रहती हैं. अपने आखिरी दिनों में नारायण सुर्वे भी यहीं बेटी के साथ रहे थे. मीडिया से बातचीत में सुजाता ने कहा, ‘मैं दस दिन के लिए अपने बेटे के घर विरार गई हुई थीं. मेरी बाई ने मुझे इस चोरी और चोर की ईमानदारी के बारे में बताया. मैं इससे हैरान रह गई. मुझे अपने कवि पिता की इस सामर्थ्य पर फिर गर्व की अनुभूति हो रही है.‘ यह अलग बात है कि पुलिस इस अनूठे केस की जांच कर रही है. मराठी के शीर्षस्थ कवियों में शुमार नारायण सुर्वे का निधन साल 2010 में नेरल में ही हुआ था. तब उनकी उम्र 83 वर्ष थी. वे लंबे समय से बीमार थे, पर अपनी मृत्यु से पहले वे अपने लेखन से वह मुकाम हासिल कर चुके थे, जिससे उन्हें न केवल पद्मश्री, सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड, कबीर सम्मान और साहित्य अकादेमी सम्मान जैसे अनेकों मान मिले, बल्कि अनगिनत प्रशंसक पाठक भी मिले. सुर्वे‘ऐसा गा मी ब्रह्म‘, ‘माझे विद्यापीठ‘, ‘जाहीरनामा‘, ‘सनद‘ और ‘नव्या माणसाचे आगमन‘ जैसी कृतियों के चलते अमर हैं. कुसुमाग्रज, विंदा करंदीकर, केशवसुत के अलावा जिस मराठी कवि को हिंदी में खूब पढ़ा गया है, उनमें सुर्वे भी शुमार होते हैं. वह एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता भी थे, जिन्होंने कई मजदूर संगठनों के साथ काम भी किया था. अब आप इसे मराठी समाज में कविता और कवि की ताकत कहें, या सुर्वे के सामाजिक कामों की लोकप्रियता, या फिर चोर की ईमानदारी… पर ऐसा वाकिआ घटा. अगर नारायण सुर्वे की मराठी से निशिकांत ठकार द्वारा अनूदित एक कविता के शब्दों को देखें तो शायद इसीदिन के लिए उन्होंने रचा था, ‘मेरे शब्द आपको हमारी कहानी सुनाएंगे…‘