नई दिल्ली: “भारत का इतिहास और भारतीय सभ्यता, ये सामान्य इतिहास बोध से कहीं ज्यादा प्राचीन और व्यापक हैं.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह बात विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र के उद्घाटन अवसर पर कही. उन्होंने कहा कि इस आयोजन में दुनिया के कोने-कोने से एक्सपर्ट्स आए हैं जो इस समिट की समृद्धि को दर्शाता है. यह आयोजन भारत की उस धरती पर हो रहा है, जो विश्व की प्राचीनतम जीवंत सभ्यताओं में से एक है. हमने देखा है, विश्व में विरासतों के अलग-अलग केंद्र होते हैं. लेकिन भारत इतना प्राचीन है कि यहां वर्तमान का हर बिंदु किसी न किसी गौरवशाली अतीत की गाथा कहता है. आप दिल्ली का ही उदाहरण लीजिये…दुनिया दिल्ली को भारत के राजधानी शहर के रूप में जानती है. लेकिन, ये शहर हजारों वर्ष पुरानी विरासतों का केंद्र भी है. यहां आपको कदम-कदम पर ऐतिहासिक विरासतों के दर्शन होंगे. यहां से करीब 15 किलोमीटर दूर ही कई टन का एक लौह स्तम्भ है. एक ऐसा स्तम्भ, जो 2 हजार वर्षों से खुले में खड़ा है, फिर भी आज तक रस्ट रेजिस्टेंट है. इससे पता चलता है कि उस समय भी भारत की मैटलर्जी कितनी उन्नत थी. स्पष्ट है कि भारत की विरासत केवल एक इतिहास नहीं है. भारत की विरासत एक विज्ञान भी है. यहां दिल्ली से कुछ सैंकड़ों किलोमीटर दूर ही 3500 मीटर की ऊंचाई पर केदारनाथ मंदिर है. आज भी वो जगह भौगोलिक रूप से इतनी दुर्गम है कि लोगों को कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर या हेलीकाप्टर से जाना पड़ता है. वो स्थान आज भी किसी कन्स्ट्रकशन के लिए बहुत चैलिंजिंग है… साल के ज्यादातर समय बर्फबारी की वजह से वहां काम हो पाना असंभव है. लेकिन, आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि केदारघाटी में इतने बड़े मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था. उसकी इंजीनीयरिंग में कठोर वातावरण और ग्लेशियर्स का पूरा ध्यान रखा गया. यही नहीं, मंदिर में कहीं भी मोर्टर का इस्तेमाल नहीं हुआ है. लेकिन, वो मंदिर आज तक अटल है.
दक्षिण में राजा चोल द्वारा बनवाए गए बृहदीश्वर मंदिर का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने मंदिर के पुरातात्विक अभिन्यास की बात बताई और कहा कि मंदिर का क्षैतिज और लंबवत आयाम, मंदिर की मूर्तियां, मंदिर का हर हिस्सा अपने आप में आश्चर्य लगता है. मैं जिस गुजरात राज्य से आता हूं, वहां धोलावीरा और लोथल जैसे स्थान हैं. धोलावीरा में 3000 से 1500 ईसा पूर्व पहले जिस तरह की अर्बन प्लानिंग थी…जिस तरह का वाटर मैनेजमेंट सिस्टम और व्यवस्थाएं थीं…वो 21वीं सदी में भी एक्स्पर्ट्स को हैरान करते हैं. लोथल में भी दुर्ग और लोअर टाउन की प्लानिंग…स्ट्रीट्स और ड्रेन्स की व्यवस्था…ये उस प्राचीन सभ्यता के आधुनिक स्तर को बताता है. भारत का इतिहास और भारतीय सभ्यता, ये सामान्य इतिहास बोध से कहीं ज्यादा प्राचीन और व्यापक हैं. इसीलिए, जैसे-जैसे नए तथ्य सामने आ रहे हैं…जैसे-जैसे इतिहास का वैज्ञानिक प्रमाणीकरण हो रहा है… हमें अतीत को देखने के नए दृष्टिकोण विकसित करने पड़ रहे हैं. यहां मौजूद दुनिया भर के विशेषज्ञों को उत्तर प्रदेश के सिनौली में मिले सबूतों के बारे में जरूर जानना चाहिए. सिनौली की खोज ताम्र युग की हैं. लेकिन, ये सिंधु घाटी सभ्यता की जगह वैदिक सभ्यता से मेल खाती हैं. 2018 में वहां एक 4 हजार साल पुराना रथ मिला है, वो ‘घोड़े से संचालित’ होने वाला था. ये शोध, ये नए तथ्य बताते हैं कि भारत को जानने के लिए अवधारणाओं से मुक्त नई सोच की जरूरत है. मैं आप सभी से आह्वान करता हूं…नए तथ्यों में, उसके आलोक में इतिहास की जो नई समझ विकसित हो रही है, आप उसका हिस्सा बनें, उसे आगे बढ़ाएं.