नई दिल्लीः राजकमल प्रकाशन ने अपना 73वां स्थापना दिवस इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में 'भविष्य के स्वरः विचार पर्व' कार्यक्रम का आयोजन कर मनाया, जिसमें अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े सात युवा वक्ताओं ने भविष्य की सम्भावनाओं पर अपने विचार रखे. इस कार्यक्रम में राजकमल प्रकाशन की पूर्व प्रबंध निदेशक शीला संधु भी उपस्थित रहीं. इस अवसर पर राजकमल प्रकाशन की इतिहास पुस्तिका 'बढ़ते कदम बनती राहें' भी श्रोताओं वक्ताओं को भेंट की गई. भविष्य के स्वर : विचार पर्व परिचर्चा में सात युवा वक्ताओं ने अपनी बात रखी. आदिवासियों के बीच शिक्षा व संस्कृति पर काम कर रहीं जसिंता करकेट्टा ने भविष्य का समाज: सहजीविता के आयाम विषय पर अपना वक्तव्य में दिया. स्मृतिलोप का दौर: भविष्य की कविता विषय पर युवा कवि सुधांशु फि़रदौस ने अपनी बात रखी.  
लोगों में कलात्मक कौशल का संप्रेषण एवं आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए निरंतर कार्यरत जिज्ञासा लाबरू ने मुखर बचपन, सुंदर भविष्य विषय पर अपना वक्तव्य दिया. दास्तानगोई के फ़नकार हिमांशु बाजपेयी ने क़िस्सागोई : वाचिक परंपरा का नया दौर विषय पर अपनी बात रखी. सिनेमा विश्लेषक मिहिर पंड्या ने सिनेमा की बदलती ज़मीन : भविष्य का सिनेमा विषय पर अपना वक्तव्य दिया, तो कवि व आलोचक मृत्युंजय ने फैन कल्चर का दौर : भविष्य का आलोचक विषय पर अपने विचार रखे. कथाकार चन्दन पाण्डेय ने पॉपुलर बनाम पॉपुलिस्ट : आख्यान की वापसी विषय पर अपनी बात कही. राजकमल प्रकाशन के कर्ता धर्ता अशोक महेश्वरी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूं. उन्होंने कहा कि जब तक लेखकों और पाठकों का भरोसा हमारे साथ है, राजकमल का भविष्य उज्ज्वल है.