– साहित्यकार महावीर रवांल्टा ने लिखी पहली रवांल्टी कहानी ‘इके रौनु कि तेके’
– भारतीय भाषा उत्सव हल्द्वानी में किया रवांल्टी भाषा की पहली कहानी का पाठ

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : चिन्नास्वामी सुब्रह्मण्यम भारती की स्मृति में आयोजित ‘भारतीय भाषा उत्सव’ के बहुभाषी रचना पाठ के कहानी सत्र में साहित्यकार महावीर रवांल्टा ने पहली रवांल्टी (गढ़वाली की उप बोली) कहानी ‘इके रौनु कि तेके’ (‘यहां रहूं ​कि वहां रहूं’) का पाठ किया। पहाड़ों से हो रहे पलायन की कश्मकश को लेकर रवांल्टी की यह पहली कहानी है, जो रवांल्टी के लिए किसी ऐतिहासिक घटना से कम नहीं है। कार्यक्रम उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाएं विभाग की ओर से हल्द्वानी में 11-12 दिसंबर को आयोजित हुआ।

साहित्यकार महावीर रवांल्टा लगातार हिंदी साहित्य के साथ रवांल्टी में भी साहित्य रच रहे हैं। रवाई क्षेत्र की लोक गाथाओं को लेकर महावीर रवांल्टा ने काफी शोध किया है। सात जनवरी 1995 को एक समाचार पत्र में प्रकाशित रवांल्टी कविता ‘दरवालु’ के माध्यम से महावीर रवांल्टा ने रवांल्टी में लेखन की शुरुआत की। उनकी 20 रवांल्टी कविताओं को प्रसिद्ध चित्रकार बी. मोहन नेगी ने कविता पोस्टर बनाकर प्रदर्शित किया, जिन्हें खूब सराहना मिली। भाषा-शोध एवं प्रकाशन केंद्र बड़ोदरा (गुजरात) के भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण, उत्तराखंड भाषा संस्थान के भाषा सर्वेक्षण तथा पहाड़ (नैनीताल) के बहुभाषी शब्दकोष ‘झिक्कल काम्ची उडायली’ में रवांल्टी भाषा पर काम किया। साथ ही महावीर रवांल्टा कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के हिंदी विभाग एवं सोसायटी फार इंडेंजर्ड एंड लेस नान लेंग्वेज लखनऊ की ओर से आयोजित भाषा प्रलेखन एवं शब्दकोश निर्माण कार्यशाला में रवांल्टी को लेकर प्रतिभाग कर चुके हैं। उनकी विभिन्न विधाओं में 38 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कथा साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में लघु शोध एवं शोध प्रबंध प्रस्तुत कर चुके हैं। रंगकर्म एवं लोक साहित्य में गहरी रुचि के चलते कई नाटकों के लेखन, अभिनय और निर्देशन का श्रेय भी उन्हें जाता है।

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की ‘संस्कार रंग टोली’, कला दर्पण व बाल श्रमिक विद्यालय की ओर से महावीर रवांल्टा की कहानियों पर आधारित नाटक मंचित हो चुके हैं। पिछले दिनों उनकी लघुकथा ‘तिरस्कार’ पर लघु फिल्म का भी निर्माण हो चुका है। साहित्यकार महावीर रवांल्टा ने कहा कि 870 भाषाओं पर कार्य हुआ है, उनमें आज रवांल्टी भी शामिल है। रवांल्टी में उनके दो कविता संग्रह ‘गैणी जण आमार सुईन’ तथा ‘छपराल’ प्रकाशित हो चुके हैं। अब पहली रवांल्टी कहानी ‘इके रौनु कि तेके’ का भी जल्द प्रकाशन होगा।