दैनिक जागरण संवादी

दैनिक जागरण की यह सामाजिक-सांस्कृतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम आम और खास पाठक, लेखक-विचारक-चिन्तक-संस्कृतिकर्मी समाज और पाठक समाज के बीच पुल की भूमिका निभा कर एक संवादधर्मी समाज के निर्माण में अपना योगदान दे, और इस संवादधर्मी समाज के निर्माण के स्वप्न के साथ ही ‘संवादी’ उत्सव की योजना की नींव रखी गयी.

संवादी के चौथे वर्ष में बात केवल साहित्य की नहीं होगी, अभिव्यक्ति के हर माध्यम और हर अनुशासन की जाएगी. सभी कला और ज्ञान-माध्यमों को भरसक इस उत्सव से जोड़ा गया है और आम और ख़ास हर तरह के पाठक-श्रोता समाज के लिए इसको सहज सुलभ बनाया जायेगा.

उत्सव में कुछ ऐसा परिवेश रचा गया है कि लेखक देखें-सुनें, कलाकार जानें-पढ़ें. चिन्तक, विचारक और समाजसेवी अपने अनुभव, विचार और स्वप्न साझा करें. युवा अपने समय की चुनौतियों और मन की उलझनों को, अपने बन रहे नजरिये को सार्वजनिक करें. शहर की आबोहवा की झलक भी हो, कलाकृतियों, तस्वीरों और किताबों की प्रदर्शनी भी हो. जो भूली-बिसरी अच्छाइयां हैं, उनको याद भी कर लिया जाये; जो नए बेहतर चलन हैं उन पर अलग-अलग पीढ़ी के लोग मिल-बैठ कर परस्पर समझ-समझा भी लें.