दुर्गेश त्रिपाठी l जागरण गोरखपुर : शानदार आवाज…यादगार इतिहास और दमदार सुर की जुगलबंदी ने ऐसा समां बांधा कि मो. रफी को याद कर कभी आंखें डबडबाईं तो कभी तन-मन झंकृत हो उठा। प्रख्यात उद्घोषक युनूस खान की आवाज की गहराई के बीच लेखक यतींद्र मिश्र जब नौशाद को मो. रफी का मेंटर बताते हैं तो श्रोता वर्ष 1949 में पहुंच जाते हैं। दुलारी फिल्म का गीत ‘सुहानी रात ढल चुकी है, ना जाना तुम कब आओगे’ सुनते समय मो. रफी के संघर्षों का दौर सबके सामने आता गया। फिर क्या था…यतींद्र मिश्र और युनूस खान तरानों का साज बुनकर श्रोताओं को मो. रफी के पास पहुंचाते रहे तो पंकज कुमार के कंठ से निकले भारतीय सिने संगीत के ‘तानसेन’ के गीत सभी को झुमाते रहे। संगीत की ऐसी महफिल सजी कि समय की किसी को सुधि नहीं रही। दैनिक जागरण संवादी के दूसरे दिन का छठा सत्र मो. रफी को समर्पित था। शताब्दी वर्ष समारोह में मो. रफी को ऐसी श्रद्धांजलि मिली जो लोगों के दिलों में उनके तरानों के रूप में अमिट छाप छोड़ गई। ‘एहसान तेरा होगा मुझ पर’ गीत पर यतींद्र मिश्र, युनूस खान और पंकज के साथ संगत देने के लिए अजय व श्याम संवादी के मंच पर पहुंचे तो तालियों से श्रोताओं ने जोरदार स्वागत किया। युनूस खान की विविध भारती वाली आवाज में श्रोताओं तक मो. रफी से जुड़ी यादें पहुंचें, इससे पहले यतींद्र मिश्र ने पंकज कुमार को इशारा किया तो, ‘न जा कहीं अब न जा दिल के सिवा’, ‘अकेले-अकेले कहां जा रहे हो’, ‘नजर न लग जाए किसी की राहों में, छुपा के रख लूं आ तुझे निगाहों में तू खो न जाए, ओ माय लव’ जैसे गीतों के गुच्छे से पूरा हाल झूमने लगा। फिर मंच संभाल लिया युनूस खान ने। बोले, ‘इस शो और बदहवासी भरी दुनिया में मो. रफी एक सुकून हैं, तनाव और दबाव से भरी दुनिया में मो. रफी हमें दिलासा देते हैं और उम्मीद की किरण दिखाते हैं। मो. रफी उस दुनिया में हमें संबल देते हैं जहां गानों का पहला अंतरा याद नहीं रहता केवल हुक लाइन याद रहती है। ऐसे समय जब मो. रफी के गाने गाए जा रहे थे तो न जाने कितनों चेहरों पर मुस्कान गहराई थी।’ फिर वह श्रोताओं को उस जमाने में लेकर गए जहां मो. रफी की पूरी यात्रा थी। फिर कुंदन लाल सहगल से लगायत मुकेश, किशोर कुमार और खुद मो. रफी की मौलिकता के बारे में बताया। बताया कि 1940 के दशक में मो. रफी ने कितनी बड़ी लकीर खींची। बात मो. रफी के संघर्षों से शुरू हुई। युनूस खान कहते हैं, ‘एक बार नौशाद खान ने मो. रफी को गाने के लिए स्टूडियो बुलाया। वह पैदल स्टूडियो पहुंचे लेकिन किसी कारण गाना नहीं रिकार्ड हो सका। नौशाद ने उन्हें वापस जाने को कहा पर वह बैठे रहे। नौशाद ने कारण पूछा तो बताया कि घर जाने के लिए पैसे नहीं हैं। इस पर नौशाद ने रुपये दिए और कहा कि खाना खाकर घर जाना। बाद में जब मो. रफी कामयाबी के शिखर पर थे तो नौशाद को घर पर खाने के लिए बुलाया। तब उन्होंने नौशाद को फ्रेम में मढ़ा एक नोट दिखाया और बताया कि यह नोट कैसे मिला था।’

 

नौशाद और रफी एक-दूसरे के पर्याय यतींद्र मिश्र

कहते हैं, ‘नौशाद और रफी एक-दूसरे के पर्याय थे।’ चर्चा किशोर कुमार तक गई तब श्रोताओं को पता चला कि गायब किशोर कुमार पर फिल्माए गए दो गीत मो. रफी ने गाए हैं। सहगल के हारमोनियम, शम्मी कपूर पर फिल्माए गए गीत ‘अई अई या करूं मैं क्या सुकू सुकू’, कोल्ड स्टोरेज में तड़के दो बजे से चार बजे तक गाने की रिकार्डिंग, विदाई गीत ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ पर मो. रफी की आंसुओं और एक से बढ़कर एक बातों के साथ कब श्रोता 1980 के दौर में पहुंच गए पता ही नहीं चला। मो. रफी के भोजपुरी गीत ‘सोनवा के पिंजरा में बंद भईल हाय राम चिरई के जियरा उदास’ ने श्रोताओं की यादों को समृद्ध किया। यतींद्र मिश्र कहते हैं, ‘मो. रफी ने कभी हिसाब-किताब नहीं जोड़ा। लोग चाहे कुछ कहें वह और किशोर कुमार एक-दूसरे के मुकाबिल कभी नहीं रहे।’ मो. रफी के लिए लिखी नौसाद की लाइनों को सुनाकर यतींद्र मिश्र ने श्रोताओं को भावुक कर दिया। राज्य संपादक आशुतोष शुक्ल की फरमाइश पर अभिनेता धर्मेंद्र के लिए गाए मो. रफी के गीत, ‘देखा है तेरी आंखों में प्यार ही प्यार बेशुमार’ को सुनकर श्रोताओं की संगीत की प्यास कुछ हद तक तृप्त हुई। इससे पूर्व राज्य संपादक आशुतोष शुक्ल ने सभी का स्वागत किया।