सुल्तानपुरः यह एक ऐसा जमावड़ा था, जिसमें गांव के अंदर भोजन और घुमक्कड़ी के बीच साहित्यिक चर्चा होनी थी. मकसद था शहरी साहित्यकारों, लेखकों को गांव के नैसर्गिक माहौल में ले जाना. वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति ने इसी मकसद से अपने गांव कुरंग में तीन दिवसीय साहित्यिक भंडारे का आयोजन किया. इस साहित्य संगमन में लखनऊ, दिल्ली गाजियाबाद, इलाहाबाद, कानपुर, आसनसोल, रानीगंज, फैजाबाद, चित्रकूट, बरेली, गुरुग्राम, मुजफ्फरनगर, सुल्तानपुर, बनारस आदि स्थानों के करीब 30 रचनाकारों ने शिरकत की. जिनमें अमरीक सिंह दीप, विवेक मिश्र, रवि शंकर सिंह, कृष्ण कुमार श्रीवास्तव, भगवान स्वरूप कटियार, कौशल किशोर, तरुण निशांत, पत्रकार अरुण सिंह, डी एम मिश्र, हरिंद्र प्रसाद, आसाराम जागरथ, कमल किशोर कमल, मोहम्मद अकरम, आलिमजाह सुल्तानपुरी, कैलाश मिश्र, अमित शुक्ला, पंकज मिश्र, अश्वनी खंडेलवाल, पत्रकार पवन तिवारी, ममता सिंह, रामनरेश पाल, मोतीलाल मौर्य, संतोष कुमार वर्मा, सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव, हेमंत कुमार, राम प्रकाश कुशवाहा, चंद्रमा प्रसाद, और बृजेश यादव जैसे नाम उल्लेखनीय हैं.

मकसद यह था कि ग्रामीण परिवेश से अछूते लेखक अपनी साहित्यिक यात्रा का विस्तार से वर्णन तो करें ही, गांव, गली, खेती, किसानी के लिए समर्पित 'इज्जत घर' को नजदीक से देखें. यही नहीं ममता सिंह द्वारा गांव अग्रेसर में स्थापित सावित्रीबाई फुले पुस्तकालय से प्रेरणा पाकर शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु लोकल स्तर पर पुस्तकालयों की श्रृंखला स्थापित करने की स्वस्थ स्पर्धा शुरू कर सकें. इस अवसर पर बृजेश यादव और नंदलाल के मार्फत लोक -संस्कृति और उसमें समाहित जनवाद पर चर्चा, जेएनयू अलमनाई बृजेश यादव द्वारा रात में गीत-गवनई-बिरहा का कार्यक्रम भी हुआ. गांव के लोगों के आतिथ्य सत्कार से अभिभूत लेखकगण टोलियों में बंटकर देश की अर्थव्यवस्था से लेकर नागरिकता संशोधन कानून एवं शाहीन बाग, भारत-चीन के बीच 1962 के युद्ध से लेकर नेहरू और मोदी एवं पाकिस्तान तक चर्चा करते रहे. साहित्य संगमन का यह आयोजन आगे भी जारी रहेगा.