नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित पुस्तक मेले ‘पुस्तकायन‘ में साहित्यिक कार्यक्रम, विमर्श और सांस्कृतिक गतिविधियों का क्रम जारी है. मेले में ‘विविधता में एकता के माध्यम के रूप में अनुवाद‘ विषय पर परिचर्चा एवं बहुभाषी कविता-पाठ का आयोजन किया गया. सांस्कृतिक कार्यक्रम में नेशनल एसोसिएशन फार ब्लाइंड के सुरकीर्ति बैंड द्वारा एक संगीतमयी प्रस्तुति दी गई. उन्होंने गांधी भजन और देशभक्ति के कई गीत प्रस्तुत किए. बहुभाषी कवि सम्मिलन वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और कवि आशुतोष अग्निहोत्री की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें असमिया की मिताली फूकन, बांग्ला के बीआर मंडल, हिंदी के जितेंद्र श्रीवास्तव, कश्मीरी के रफीक मसूदी, तमिल की भूमा वीरवल्ली एवं तेलुगु के ए कृष्णाराव ने अपनी-अपनी कविताएं हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत कीं. अध्यक्षीय वक्तव्य में अंग्रेजी एवं हिंदी के कवि आशुतोष अग्निहोत्री ने कहा कि आज यहां विभिन्न भारतीय भाषाओं की कविता सुनकर लगा कि कविता किसी भाषा की मोहताज नहीं होती है उसमें भाव ही प्रमुख होते हैं. उन्होंने सभी कवियों की कविताओं को श्रेष्ठ बताते हुए महाभारत के पात्र अभिमन्यु की मृत्यु पर एक लंबी कविता प्रस्तुत की.
अनुवाद पर आयोजित परिचर्चा की अध्यक्षता हरीश नारंग ने की. इस सत्र में अनुवादक और लेखिका रख़्शंदा जलील एवं रेखा सेठी ने अपने विचार व्यक्त किए. रख़्शंदा जलील ने अनुवाद में विविधता में एकता की उपस्थिति को मध्ययुगीन भक्ति काव्य में रेखांकित करते हुए कहा कि भक्ति कालीन समय इस उपलब्धि का मील का पत्थर है. अब्दुल रहीम खानखाना का उल्लेख करते हुए कहा कि यह वह काल था जब अनेक भारतीय कालजयी कृतियों का अनुवाद तो हुआ ही बल्कि वह अनुवाद चित्रों के साथ था, जिससे उसको व्यापक लोकप्रियता मिली है. रेखा सेठी ने अनुवाद को एक जुगलबंदी मानते हुए कहा कि इंटरनेट आने के बाद अनुवाद की दुनिया और व्यापक हुई है, लेकिन संतुलित अनुवाद की जरूरत अभी भी बनी हुई है. हरीश नारंग ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि भारत भाषाओं के मामले में विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है. साहित्य अकादेमी की स्थापना सभी भाषाओं को सम्मान देने के उद्देश्य से की गई. भारत में भाषा के सवालों को बड़ी ही सहजता से संभाला गया है. लेकिन नए अनुवादकों की आवश्यकता अभी भी बनी हुई है.