'हिंदी, हिंदू, हिदुस्तान' का प्रसिद्ध नारा देने वाले लेखक, कवि, पत्रकार, अनुवादक, समाजसुधारक प्रतापनारायण मिश्र का जन्म 24 सितंबर, 1856 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. पिता ने प्रताप नारायण को ज्योतिषी की शिक्षा देनी चाही, पर इनका मन ज्योतिष में नहीं लगा. अंग्रेजी शिक्षा के लिए स्कूल में प्रवेश लिया लेकिन वहां भी अध्ययन में रुचि न जगी. लेकिन स्वध्ययन और सुसंगति से उन्होंने न केवल हिंदी, उर्दू, फारसी, संस्कृत और बंगला भाषा का अच्छा ज्ञान हासिल किया बल्कि जमकर अनुवाद और रचनाएं भी कीं. वह भारतेंदु हरिश्चंद्र के विचारों और आदर्शों के महान प्रचारक और व्याख्याता थे. वह प्रेम को परमधर्म मानते थे और उसी को दृष्टि में रखकर सैकड़ों लेख लिखे. वह आधुनिक हिंदी निबंधों को परंपरा को पुष्ट कर हिंदी साहित्य के सभी अंगों की पूर्णता के लिये रचनारत रहे. एक सफल व्यंग्यकार के अलावा हास्यपूर्ण गद्य-पद्य-रचनाकार के रूप में भी हिंदी साहित्य में उनका विशिष्ट स्थान है.

प्रतापनारायण मिश्र द्वारा रचित प्रमुख कृतियों में नाटक: गोसंकट, कलि कौतुक, कलि प्रभाव, हठी हम्मीर, जुआरी खुआरी, सांगीत शाकुंतल, दूध का दूध और पानी का पानी; मौलिक गद्य कृतियां: चरिताष्टक, पंचामृत, सुचाल शिक्षा, बोधोदय, शैव सर्वस्व; अनूदित कृतियां: नीतिरत्नावली, कथामाला, सेनवंश का इतिहास, सूबे बंगाल का भूगोल, वर्णपरिचय, शिशुविज्ञान, राजसिंह, इंदिरा, राधारानी, युगलांगुलीय, देवी चौधरानी, कपाल कुंडला; कविता: प्रेमपुष्पावली, मानस विनोद, रसखान शतक, रहिमन शतक, मन की लहर, ब्रैडला स्वागत, दंगल खंड, कानपुर महात्म्य, श्रृंगारविलास, लोकोक्तिशतक, और उर्दू में दीवो बरहमन के अलावा प्रताप पीयूष, निबंध नवनीत, प्रताप लहरी, काव्य कानन जैसी रचनाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया. उन्होंने 'ब्राह्मण' एवं 'हिन्‍दुस्‍तान' नामक पत्रों का सफलतापूर्वक संपादन किया और लगभग 40 पुस्तकों की रचना की. उनकी साहित्यिक विशेषता ही थी कि उन्होंने दांत, भौं, वृद्ध, धोखा, बात, मूंछ जैसे साधारण विषयों पर भी चमत्‍कार पूर्ण और असाधारण निबंध लिखे.