18 दिसंबर की बात है, साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा हुई थी। हिंदी के लिए नंदकिशोर आचार्य को पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी लेकिन जूरी ने गंगा प्रसाद विमल के नाम पर भी विचार किया था। मुझे जब इस बात का पता चला तो मैंने शाम को उनको फोन किया और जूरी में हुई चर्चा के बारे में उनको बताते हुए अफसोस प्रकट करने के अंदाज में उनसे बोला कि सर! पुरस्कार आपको मिलते मिलते रह गया। विमल जी ने जो कहा उसने मुझे नि:शब्द कर दिया। बोले, अनंत जी कोई बात नहीं अभी और बेहतर लिखूंगा तो शायद जूरी मुझे पुरस्कार के लायक समझे। अस्सी साल की उम्र में बेहतर लेखन की ये ललक हिंदी साहित्य में कम ही मिलती है। अपने इस एक वाक्य से उन्होंने ये सीख दे दी कि अगर कुछ नहीं मिला तो निराश नहीं होना चाहिए बल्कि उसको चुनौती के तौर पर लेना चाहिए और बेहतर और सकारात्मक करना चाहिए। विमल जी को लंबे समय से जानता था। पिछले महीने 15 नवंबर को पटना पुस्तक मेला के दौरान दैनिक जागरण ने सान्निध्य कार्यक्रम किया था। कार्यक्रम में विमल जी को लेकर हम पटना गए थे। विमल जी ने कार्यक्रमों में जाना बहुत कम कर दिया था लेकिन वो दैनिक जागरण के कार्यक्रम में पहुंचे और सक्रिय भागीदारी की। कार्यक्रम के बाद रात को होटल में खाने की मेज पर बैठे तो साहित्य चर्चा शुरू हो गई। साथ में हिंदी के वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी भी बैठे थे। महाभारत और रामायण पर चर्चा होने लगी। चर्चा इस बात पर होने लगी कि महाभारत दुनिया का सबसे बड़ा क्राइम थ्रिलर है। उसके पात्रों की बहुलता और स्त्री पात्रों पर चर्चा हुई। विमल जी को महाभारत के इतने प्रसंग याद थे कि कब रात के एक बज गए पता ही नहीं चला।

जगूड़ी जी ने चर्चा को साहित्य में श्रृंगार रस की ओर मोड़ा तो विमल जी उसमें भी उसी अंदाज में भागीदार बने। जब चर्चा वाल्मीकि रामायण के आधार पर स्त्रियों के आभूषणों और श्रृंगार पर वासुदेव शरण अग्रवाल की लिखी पुस्तक श्रृंगार हाट की चली तो विमल जी ने उस पुस्तक में रानियों के अलावा राक्षस स्त्रियों के आभूषणों पर बोलते रहे। जगूड़ी जी को भी उस पुस्तक की याद आ रही थी। ये पुस्तक अब मिलती नहीं है। गंगा प्रसाद विमल जी ने एक बार फिर से उस पुस्तक को पढ़ने की इच्छा जताई थी और मुझे ये जिम्मा सौंपा था कि कहीं मिले तो उसकी फोटो कॉपी उनको दूं। उनके असमय चले जाने से उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हो पाई।

विमल जी के साथ हमारी ढेर सारी यादें हैं। अब से करीब बीस साल पहले की बात होगी। हमलोग एक शादी में मेरठ गए थे। रास्ते में मैंने उनका एक लंबा इंटरव्यू रिकॉर्ड किया था। विमल जी अपने स्वभाव के विपरीत उस दिन बेहद आक्रामक थे और वामपंथ के खिलाफ काफी कुछ बोल गए थे। शादी समारोह में काफी रात हो गई थी और विमल जी रसरंजन के बाद मगन हो गए थे। मैं, विमल जी और रुद्रनेत्र शर्मा जी मेरठ से लौट रहे थे। दिल्ली में भयानक गर्मी पड़ रही थी। तब विमल जी पटपड़गंज में रहा करते थे। ये हमें भी मालूम था लेकिन अपार्टमेंट का पता नहीं था। हम जब इंदिरापुरम से आगे बढ़े तो उनसे पूछा कि आपको कहां छोड़ दें, किस अपार्टमेंट में रहते हैं। विमल जी ने कहा कि मुझे याद नहीं है। फिर बोले कि मदर डेयरी वाली रोड पर एक मंदिर है वहीं मेरा घर है। आपलोग मंदिर के पास मुझे छोड़ दो मैं घर चला जाऊंगा। हमने मंदिर के पास उनको उतार दिया। तब रात के करीब डेढ़ बजे थे। जब हम थोड़ा आगे चले गए तो रुद्रनेत्र जी ने कहा कि एक बार वापस चलते हैं और देख लेते हैं कि विमल जी अपने घर गए कि नहीं। हमलोग वापस मंदिर के पास पहुंचे तो विमल जी वहीं फुटपाथ पर बैठे थे। अब रात के करीब दो बज रहे हैं, विमल जी से पूछा तो फिर वही उत्तर कि याद नहीं। फिर किसी तरह से उऩको लेकर हम पैदल ही उस रोड पर चले तो थोड़ा आगे बढ़ते ही एक अपार्टमेंट के गेट पर खड़े गार्ड ने विमल जी को पहचान लिया और बोला सर तो यहीं रहते हैं। हमारी जान में जान आई। गार्ड विमल जी को लेकर उनके फ्लैट पर पहुंचा आया। अगले दिन विमल दी से बात हुई तो एकदम सामान्य, बीती रात की कोई चर्चा ही नहीं।

गंगा प्रसाद विमल हिंदी के बेहद समादृत लेखक थे, प्रतिभाशाली भी। उन्होंने विपुल लेखन किया और उनकी पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। हिंदी में अकहानी आंदोलन के प्रणेता के तौर पर भी उऩको याद किया जाता है। उन्होंने हिंदी कहानी को अपनि लेखनी से समृद्ध किया। गंगा प्रसाद विमल ने कहानी के अलावा कविताएं भी लिखीं और एक कवि के रूप में हिंदी साहित्य में अपनी पहचान स्थापित की। कहानी और कविता के अलावा विमल जी ने उपन्यास भी लिखा। 1971 में प्रकाशित उनका उपन्यास कहीं कुछ और को पाठकों ने बहुत पसंद किया था। विमल जी ने दिल्ली के जाकिर हुसैन कॉलेज में अध्यापन किया, केंद्रीय हिंदी निदेशालय के एक दशक से अधिक समय तक निदेशक रहे, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर रहे। जेएनयू से रिटायर होने के बाद दिल्ली का इंडिया इंटरनेशनल सेंटर उनकी पसंदीदा जगह थी। वहीं वो मिलते भी थे और साहित्यिक चर्चाएं भी करते थे। विमल जी जितने अच्छे लेखक थे उतने ही अच्छे व्यक्ति भी थे। इस वजह से पूरे साहित्य जगत में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो विमल जी का मुरीद ना हो। साहित्य के इस अजातशत्रु लेखक को नमन

-अनंत विजय