नई दिल्लीः केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी दिवस 2019 के अवसर पर विज्ञान भवन में जो कहा उस पर अनर्गल बहस चल रही है. बिना यह समझे कि गृहमंत्री कहना क्या चाहते थे. अमित शाह ने कहा था, संविधान निर्माता जब राजभाषा को आकार दे रहे थे तब कई तरह के मत-मतांतर थे लेकिन विभिन्‍न भाषाओं और संस्कृतियों को देखकर, समझकर तथा उस समय की स्थिति का आकलन, अवलोकन और चिंतन कर, संविधान निर्माता एकमत पर पहुंचे और हिंदी को संविधान सभा ने राजभाषा का दर्जा प्रदान किया. शाह ने कहा था कि संविधान सभा में देश के कोने-कोने का प्रतिनिधित्‍व था और उनका वह निर्णय आज भी एकता और अखंडता को मजबूत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. जो लोग इस पर बहस कर रहे हैं क्या वे इस तथ्य को ठुकरा सकते हैं? अमित शाह का कहना था कि भाषा की समृद्धि का वरदान सबसे ज्यादा भारत को प्राप्‍त है. देश में लगभग 122 भाषाएं और 19500 से अधिक बोलियां शामिल हैं जिनका समृद्ध इतिहास है. उन्होंने कहा था कि भारत की भाषा सबसे समृद्ध है और हमें गुलामी के कालखंड के भाव को छोड़ना होगा. बच्चों से अपनी भाषा में बात करनी होगी. उनका कहना था कि भाषा तभी जीवित रहती है जब समाज उसका उपयोग करता है इसलिए हमें नई पीढ़ी को अपनी भाषा के साथ जोड़ कर गौरवान्वित महसूस कराना होगा. साहित्यकारों के कई व्हाट्सएप ग्रुप पर इस बात की जमकर चर्चा हो रही है। 

साहित्य से जुड़े एक समूह में एक सदस्य ने लिखा कि अमित शाह ने अपने भाषण में इस तथ्य की ओर भी इशारा किया था कि दुनिया के कई देश अपनी भाषा छोड़ चुके हैं और वह देश अपना अस्तित्व भी खो चुके हैं. उनका कहना था कि भाषा ही व्यक्ति को अपने देश, संस्कृति और मूल के साथ जोड़ती है.आज आत्म चिंतन और आत्मावलोकन की जरूरत है. उनका कहना था कि बुद्धि, ज्ञान और मेधा ही संस्कृति की रचना करते हैं इसलिए आवश्‍यक है कि हमें इस दिशा में प्रयासरत रहना चाहिए. शाह का यह भी कहना था कि अगर भाषा और बोलियां खोते हैं तो विचार प्रवाह से भी कटाव हो जाता है. उन्होंने कहा था कि अनेक भाषा और बोलियां हमारी ताकत है किंतु देश में एक ऐसी भाषा होनी चाहिए जो सब लोग समझते हों. देश में हिंदी भाषा को प्रचारित, प्रसारित तथा लगातार संशोधित करना और उसके साहित्य को लगातार समृद्ध करना हमारा राष्ट्रीय दायित्व है. शाह ने था कि यह कार्यक्रम सभागारों का नहीं बल्कि जनता का कार्यक्रम होना चाहिए.  हिंदी के आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाना होगा. उन्होंने हिंदी को लेकर और भी बातें कहीं, पर मूल भाव यही था. इसमें दबाव व अन्य भारतीय भाषाओं पर प्रभुता की कोई बात नहीं थी. फिर विवाद क्यों है, समझना मुश्किल नहीं.