नई दिल्लीः शहीदों की स्मृति को भाषा और संस्कृति से जोड़ने का अमर शहीद डॉ शिवपूजन राय प्रतिष्ठान्न का यह अद्भुत आयोजन था, जिसमें समूचा गांधी शांति प्रतिष्ठान्न का सभागार भरा रहा. हर साल 18 अगस्त, 1942 को गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद तहसीले के शेरपुर गांव में आठ लोगों की शहादत की घटना को याद करते हुए गाजीपुर, बलिया, बनारस और पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बिहार के राजधानी में रह रहे पूर्वांचली लोग इस आयोजन में जुटते हैं. गोष्ठी में शामिल वक्ताओं ने एक स्वर से हिंदी के भविष्य को उज्ज्वल बताते हुए कहा कि हिंदी देश में ही नहीं विदेशों में भी बहुसंख्या में बोली जा रही है और उम्मीद है कि जल्द ही संयुक्त राष्ट्र में भी बोली जाएगी. यह अच्छी बात है कि बाजार भी इस दिशा में मददगार हो रहा है. हिंदी की व्यापकता में समाज, बाजार और शिक्षा की भूमिका का जिक्र करते हुए सभी वक्ताओं ने उन शहीदों को नमन किया, जिनके बलिदान की वजह से आज देश और उसके लोग तरक्की की राह पर हैं.

 

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह ने की और विषय प्रवर्तन मिथिला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रह्मदेव प्रसाद कार्यी ने किया. कार्यक्रम में वक्ता के तौर पर भारतीय इतिहास परिषद के सदस्य सचिव रजनीश शुक्लादिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल राय, अलीगढ़ मुस्लिम साल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमला नंद झा और वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार ने शिरकत की. इस मौके पर गाजीपुर के पत्रकार धीरेंद्र श्रीवास्तव ने कविता-पाठ किया. इस अवसर पर कई लोगों को सम्मानित करने के साथ ही दो पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ. पहली पुस्तक थी मिथिला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रह्मदेव प्रसाद कार्यी की 'स्वतंत्र भारत में राष्ट्र भाषा का सवाल' और दूसरी थी अनिल कुमार राय की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक 'वेलनेस अक्लमटाइजेशन'. कार्यक्रम का संचालन जेएनयू के शोध छात्र सूर्यनाथ ने किया जबकि संस्था की ओर से अतिथियों का स्वागत गोपाल जी राय ने किया. राजीव रंजन राय ने धन्यवाद ज्ञापन किया.