पटना, 6 अगस्त।  बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित हिंदी पखवारा के तीसरे दिन हिंदी काव्य में बिहार का योगदान विषय पर संगोष्ठी  आयोजित की गई। भूपेंद्र नारायण मंडल विश्विद्यालय, मधेपुरा के पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा ने कहा "हिंदी काव्य में बिहार के कवियों का बेहद अहम योगदान रहा है। इन लोगों ने नई दिशा दी है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, गोपाल सिंह नेपाली, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री , आर.सी प्रसाद सिंह जैसे , मोहन लाल महतो'वियोगी', पंडित वैद्यनाथ मिश्र 'नागार्जुन' ने  सरीखे महान कवियों की अपनी काव्य शक्ति और अपार ऊर्जा से  हिंदी का काव्य भंडार भरा पड़ा है। इनलोगों ने न सिर्फ समीक्षकों व पाठकों को आकर्षित किया बल्कि सर्जना और नवीन कल्पनाओं की प्रेरणा दी।" अमरनाथ सिन्हा ने आगे कहा " हिंदी साहित्य का पुनर्लेखन आवश्यक है। इसकी शुरुआत संतों के लेखन आए की जानी चाहिए।आगाज़ संत सरहपा से होता है जो बिहार के थे। इसी सिद्ध साहित्य से दो धाराएं निकली निर्गुण और सगुण। निर्गुण साहित्य के किनारे कबीर दिखाई देते हैं तो भक्ति साहित्य में सूरदास सहित अन्य कवियों का नाम आता है। भक्ति साहित्य का आरंभ मैथिल कोकिल विद्यापति से माना जाता है।सूरदास से पहले उमापति ने गए  पदों  की रचना की थी। हिन्दी काव्य का आरंभ बिहार से रहा है। आधुनिक हिंदी में भी कवि महेश नारायण का नाम पहली कविता लिखने का श्रेय जाना चाहिए, जिनकी पहली कविता 1821 में प्रकाशित हुई थी। उस कविता में आधुनिक संवेदना दिखाई पड़ती है।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने अपने संबोधन में  कहा "बिहार के कवियों ने अतुल्य योगदान दिया है। संत कवि सरहपा से लेकर कवि कोकिल विद्यापति तक महान परम्परा रही है। आधुनिक हिंदी में भी बिहार से आने वाले साहित्यकारों के लिए प्रेरणादायक रहे हैं। संगोष्ठी को सम्मेलन के उपाध्यक्ष शंकर प्रसाद, दा मधु वर्मा, दा कल्याणी कुसुम सिंह, दा मेहता नागेंद्र सिंह, ओमप्रकाश, दा सुधा सिन्हा, दा अर्चना त्रिपाठी, दा विनय कुमार, विष्णुपुरी, राज कुमार प्रेमी, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, चंदा मिश्रा , जयप्रकाश पुजारी, शुबजचन्द्र सिन्हा, रवि घोष, पंडित गणेश झा सहित कई लोगों ने विचार व्यक्त किये।

संचालन योगेंद्र मिश्र ने किया।