नई दिल्ली: साहित्य अकादमी द्वारा 'अलिखित भाषाओं में मौखिक महाकाव्य' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में लोकसाहित्य विशेषज्ञ कपिल तिवारी ने बीज वक्तव्य में कहा कि हमें अपनी ज्ञान और लोकपरंपरा को पश्चिमी नज़रिये से जांचने परखने की जरूरत नहीं है. इससे हमारी परंपरा को नुकसान होता है. भारतीय वाचिक साहित्य को भारतीय काल बोध से समझना होगा. उन्होंने कहा कि यह भारत भूमि में ही संभव हुआ कि हमने ज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए उसे रस से जोड़ा. उन्होंने हमारे दोनों आर्ष महाकाव्यों रामायण और महाभारत का उल्लेख करते हुए कहा कि इन मौखिक महाकाव्यों ने पूरे एशियाई महाद्वीप को प्रभावित किया और सभी को सहज और सरल बोध एवं दृष्टि प्रदान की. उन्होंने इन महाकाव्यों में छिपे विशाल कथा संसार का उल्लेख करते हुए कहा कि इन मौखिक महाकाव्यों के मुख्य विषय युद्ध और प्रेम ही हैं. आभासी मंच से जुड़े भाषाविद् कपिल कपूर ने कहा कि भारतीय साहित्य के मूल में हमारे मौखिक काव्य ही हैं. लेकिन लिखित रूप में संरक्षित करने पर यह ज्यादा समय तक जीवित रहेगा, यह एक पूर्वाग्रह है. भारतीय साहित्य पढ़ने से ज़्यादा सामूहिक रूप से सुनने के लिए लिखा जाता रहा है. इसे तकनीक में रूपांतरित करने से इसकी परंपरा प्रभावित होती है. अतः हमें इसे साक्षात् प्रस्तुति के रूप में बढ़ाना होगा. भारत की मौखिक परंपरा ने काव्य और ज्ञान को सबसे ज़्यादा समृद्ध किया है. उन्होंने उत्तर-पूर्व के समृद्ध मौखिक साहित्य का भी उल्लेख किया.
साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि हमारे प्राचीन लेखकों ने अलौकिक सत्य को लौकिक रूप में मौखिक महाकाव्यों द्वारा प्रस्तुत किया. आज के युग के सभी सूत्र इस साहित्य में उपलब्ध हैं. भारतीय एकात्मकता के सूत्र भी हमारे मौखिक महाकाव्यों में मिलते हैं. कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि मौखिक महाकाव्य के सबसे बड़े उदाहरण रामायण और महाभारत ने पूरे एशियाई महाद्वीप की सोच को प्रभावित किया है. साहित्य अकादमी इनके संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबद्ध है. संगोष्ठी के दूसरे सत्र में बलवंत जानी की अध्यक्षता में 'भारतीय महाकाव्य: मौखिक और लिखित' विषय पर चर्चा हुई जिसमें आदित्य मलिक, माधुरी यादव और मोलि कौशल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. 'उत्तर भारत के महाकाव्य' विषयक सत्र की अध्यक्षता कपिल तिवारी ने की और वसंत निरगुणे एवं श्रीकृष्ण काकड़े ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. दो दिवसीय इस आयोजन के पहले दिन का अंतिम सत्र 'उत्तर पूर्व के मौखिक महाकाव्य' पर केंद्रित था. सत्र की अध्यक्षता एम. मणि मैतेई ने की एवं दिलीप कुमार कलिता, एस. सनातोम्बी एवं सिल्वेनस लामारे ने आलेख प्रस्तुत किए. कार्यक्रम का संचालन अकादमी के उपसचिव एन. सुरेशबाबू ने किया.