हिंदू धर्म संस्कृति में विश्वास करने वाला शायद ही कोई ऐसा हो जिसने हनुमान जी का नाम न सुना हो. श्री हनुमान जयंती पर हम पवनपुत्र पर लिखी महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की चर्चा करेंगे. हनुमान चालीसा लगभग सभी हिंदू मतावलंबियों को याद रहती है. मान्यता है कि इसकी रचना स्वयं गोस्वामी तुलसीदास ने की थी, वह भी तब जब वह संकट में थे. जाहिर है इसकी रचना के बाद वह संकटमुक्त हो गए. पर इसके लेखन से पहले ही श्री रामचरित मानस की रचना के समय भी उन्होंने एक समूचा अध्याय ही ‘सुंदरकांड’ नाम से हनुमान जी को समर्पित कर दिया था. राम चरित मानस का पांचवा अध्याय सुंदरकांड कहलाता है. सुंदरकांड में श्री हनुमान के सामर्थ्य और रामभक्ति का वर्णन है. यह सभी को ज्ञात है कि श्रीरामचरितमानस के सोपानों का नामकरण व्यक्ति या स्थितियों के नाम पर हुआ है. जैसे श्रीराम की बाललीला का वर्णन करता बालकांड,अयोध्या की घटनाओं का वर्णन करता अयोध्याकांड, जंगल के जीवन का वर्णन करता अरण्यकांड, किष्किंधा की घटनाओं का वर्णन करता किष्किंधा कांड, लंका युद्ध की चर्चा लंका कांड और जीवन के गूढ़ प्रश्नों का दार्शनिक उत्तर देता उत्तरकांड कहा गया है. पर श्री हनुमान कथा का नाम सुंदरकांड रखा गया.
दरअसल, श्री हनुमान के सामर्थ्य व महत्ता वर्णन के सोपान को सुंदरकांड नाम देने के पीछे गोस्वामी जी की अपनी दृष्टि थी. श्री हनुमान को अपनी सामर्थ्य दिखाने का अवसर प्रभु श्री राम के सान्निध्य में ही मिला, वह भी सीता जी की खोज व श्री राम-रावण युद्ध के दौरान. रावण लंका का राजा था और लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी थी. त्रिकुटाचल यानी तीन पर्वत; पहला सुबैल, जहां के मैदान में राम-रावण संग्राम हुआ था. दूसरा,नील पर्वत- जहां राक्षसों के महल थे और तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत था जहां थी अशोक वाटिका और जहां हनुमानजी ने पहली बार मां सीताजी के दर्शन किए थे. गोस्वामी जी ने श्री हनुमान की सामर्थ्य को इसी से जोड़ दिया. पौराणिक कथा लेखक देवदत्त पटनायक ने तो श्री हनुमान की महत्ता को समझाने के लिए ‘मेरी हनुमान चालीसा’ नामक पुस्तक ही लिख दी. इस पुस्तक में उन्होंने न केवल हनुमान चालीसा के छंदों की आध्यात्मिक व्याख्या की है, बल्कि यह भी बताया है कि अपने अंतर में बसाने के बावजूद हनुमान जी श्री राम की कहानी को बार-बार क्यों दोहराते हैं. पटनायक कहते हैं कि ऐसा कर श्री हनुमान राम को समझते हैं और अपने अंदर के राम को पाने के साथ ही उस क्षमता को भी तलाशते हैं, जो मंदिरों में अपनी अभिलाषा पूरी करने के लिए उनकी पूजा करती है.