सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।

 

हिंदी का शायद ही कोई ऐसा पाठक हो जिसने सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता 'झांसी की रानी' की यह पंक्तियां न पढ़ी हों. सुभद्रा कुमारी चौहान अपने दौर की सर्वाधिक प्रतिष्ठित भारतीय कवयित्री थीं. उनका जन्म इलाहाबाद जिले के निहालपुर गांव में 16 अगस्त, 1904 को हुआ था. सुभद्रा कुमारी की काव्य प्रतिभा बचपन से ही सामने आ गई थी. उनकी प्रारंभिक शिक्षा 'क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज' में हुई. 1913 में जब वह केवल नौ वर्ष की थीं, तब उनकी पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका 'मर्यादा' में प्रकाशित हुई. यह कविता उन्होंने 'सुभद्राकुंवरि' के नाम से 'नीम' के पेड़ पर लिखी थीं. उनका विद्यार्थी जीवन प्रयाग में ही बीता, जहां उन्हें महादेवी वर्मा जैसी सहेली मिली. सुभद्रा बचपन से ही राष्ट्रभक्ति की भावना से भरी हुईं, चंचल और कुशाग्र बुद्धि थीं. उन्हें 1921 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में नागपुर की अदालत में गिरफ्तारी देने के चलते देश के लिए गिरफ्तार होने वाली प्रथम सत्याग्रही महिला होने का गौरव भी हासिल है.

 सुभद्रा कुमारी चौहान ने लगभग 88 कविताएं और 46 कहानियां लिखीं, पर उनकी एक ही कविता इतनी अधिक लोकप्रिय हो गई कि शेष रचनाएं प्रायः गौण होकर रह गईं. उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि उनका कविता संकलन 'मुकुल' जो उनका पहला काव्य-संग्रह था और 1930 में प्रकाशित हुआ था के छह संस्करण उनके जीवन काल में ही निकल चुके थे. सुभद्रा कुमारी चौहान की चुनी हुई कविताएं 'त्रिधारा' में भी प्रकाशित हुईं. राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और जेल यात्रा के बाद भी उनके तीन कहानी संग्रह 'बिखरे मोती' 1932 में, 'उन्मादिनी' 1934 में और 'सीधे-सादे चित्र' 1947 में प्रकाशित हुए.  इन कथा संग्रहों में उनकी कुल 38 कहानियां, क्रमशः पंद्रह, नौ और चौदह शामिल थीं.

 सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं हमें भावनात्मक रूप से प्रभावित करती हैं. उनकी प्रसिद्ध रचना 'झांसी की रानी' पूरे हिंदी साहित्य में भारत के लोगों द्वारा सबसे ज्यादा पढ़ी, सुनी-सुनाई और गायी जाने वाली रचनाओं में से एक है. सुभद्रा कुमारी चौहान ने उस दौर में हिंदी साहित्य में अपनी पहचान बनाई, जब उनकी समकालीन स्त्री-कथाकारों की संख्या अधिक नहीं थीं. हिंदी साहित्य के लिए यह बेहद दुखदाई घड़ी थी कि 15 फरवरी, 1948 को केवल 44 वर्ष की आयु में ही एक कार हादसे में इस महान लेखिका का निधन हो गया. वह भारत की एक प्रमुख कवयित्री थीं, जिनका लेखन आज भी लोगों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है. भारत सरकार ने उनकी याद में अपने एक भारतीय तट रक्षक जहाज़ का नाम 'सुभद्रा कुमारी चौहान' रखा है.

 जागरण हिंदी सुभद्रा कुमारी चौहान की जयंती पर इस महान लेखिका की याद को नमन करता है.