नई दिल्लीः साहित्योत्सव के दौरान पूर्वोत्तरी कार्यक्रम के अंतर्गत उत्तर-पूर्व और उत्तरी लेखक सम्मिलन का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन हिंदी कवि, समालोचक एवं साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने किया. उन्होंने कहा कि आज का समय व्यापक हिंसा का समय है और मेरा यह विश्वास है कि अगर साहित्य को जनता तक पहुंचा दिया जाए तो यह हिंसा निश्चित रूप से कम होगी. साहित्य द्वारा परिवर्तन की अहिंसक प्रक्रिया संभव है. आगे उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई भाषा न किसी से बड़ी होती है न किसी से छोटी. जिस परिवेश की भाषा होती है उस परिवेश का सबसे उपयुक्त चित्रण वही भाषा कर सकती है और उसका हू-ब-हू अनुवाद होना संभव नहीं है. भूमंडलीकरण के कारण एकरूपता का जो बुखार चढ़ा है उसमें कई भाषाएं सत्ता और पावर की भाषाएं हो गई हैं. हम लेखकों को जागरूक होकर ऐसी चुनौतियों का सामना करना होगा, नहीं तो बहुत-सी भाषाएं खत्म हो जाएंगी.
विशिष्ट अतिथि ध्रुव ज्योति बोरा ने कहा कि यह समय झूठी खबरों का है और सत्य एक सत्य नहीं रहा है. हर किसी का सत्य उसके लिए अलग-अलग है और इस कारण प्रेस और लेखकों आदि की स्वतंत्रता बाधित हुई है. लेखकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे एक सच्ची दुनिया को तैयार करें. कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने की और स्वागत भाषण साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने किया. इस कार्यक्रम से इतर भाषांतर के तहत अनुवाद की चुनौतियां एवं समाधान शीर्षक से हुई परिचर्चा में बीज वक्तव्य आशा देवी द्वारा दिया गया. इसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं के अनुवादकों मिनी कृष्णन, आलोक गुप्त, पूरनचंद टंडन, गौरीशंकर रैणा, ओ.पी. झा, प्रकाश भातंब्रेकर, महेंद्र कुमार मिश्र, सुभाष नीरव, युमा वासुकि, जानकी प्रसाद शर्मा ने अपनी-अपनी भाषा की चुनौतियों और उनके समाधानों पर बातचीत की. इसी कार्यक्रम में प्रख्यात श्रीलंकाई लेखक सांतन अय्यातुरै को प्रेमचंद फ़ेलोशिप 2017 भी प्रदान की गई. एक अन्य कार्यक्रम में साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य गोपीचंद नारंग द्वारा संवत्सर व्याख्यान दिया गया जिसका विषय था – फ़ैज अहमद फ़ैज – तसव्वुरे इश्क़, मानी आफ़रीनी और जमालियाती एहसास.