नई दिल्लीः आजादी के साथ देश ने कई सपने देखे थे और आज 72 वर्ष बाद उनके विवेचन की जरूरत है. साहित्य अकादमी ने इसी उद्देश्य से 73वें स्वतंत्रता दिवस पर 'भारत-स्वतंत्रता और उसके बाद' विषयक परिसंवाद आयोजित किया. परिसंवाद के आरंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने सभी अतिथि विशेषज्ञों का अंगवस्त्रम् के साथ अभिनंदन किया. इसके बाद कवि एवं प्रशासक ज्ञानेश्वर मुळे ने मानवाधिकार के क्षेत्र में देश की प्रगति के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए. पत्रकार एवं चिंतक वेद प्रताप वैदिक ने बौद्धिक और सांस्कृतिक आजादी को भी आवश्यक बताते हुए कहा कि परतंत्रता के कई सूक्ष्म रूप भी होते हैं, हमारा ध्यान उनकी तरफ भी जाना चाहिए. प्रख्यात नृत्यांगना शोवना नारायण ने कहा कि आज हमारी कलाएं प्राचीनता का दायरा तोड़कर नए सामाजिक संदर्भों की व्याख्याएं प्रस्तुत कर रही हैं. कवि के सच्चिदानंदन ने बताया कि हर दौर की कविता ने हमारी कमियों पर लगातार नजर रखी. यही कारण था कि कविता पहली बार संवाद के स्वर में परिवर्तित हुई.

चर्चित एंकर सईद अंसारी ने कहा कि हमें अपने दृष्टिकोण को सही प्रकार से समझने और परखने की जरूरत है. पत्रकार प्रताप सोमवंशी ने कहा कि हमें अपने तथाकथित विकास के मॉडल पर पुनर्विचार की जरूरत है. चुनाव विश्लेषक संजय कुमार ने कहा कि चुनाव में प्रत्येक नागरिक की भागीदारी लगातार बढ़ी है, और यह एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है. लेखिका मृदुला गर्ग ने कहा कि जब तक हम अपनी मानसिक जकड़न और संकीर्णता से नहीं निकलेंगे तब तक आजादी के सही मायने हम प्राप्त नहीं कर पाएंगे. प्रसिद्ध इतिहासकार सुधीर चंद्र ने शिक्षा और स्वास्थ्य के महंगे होते जाने और पत्रकारिता के गिरते स्तर पर गहरी चिंता व्यक्त की. आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने भाषा के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि लोग इस तरह भी अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा कर रहे हैं. अंत में नंदू राम ने कहा कि सामाजिक एवं धार्मिक असमानता की गहरी खाई आज भी हमारे सामने है, जिसे पाटना बेहद आवश्यक है. सचिव के श्रीनिवासराव ने आभार प्रकट किया. संचालन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया.