नई दिल्लीः आज प्रो सूर्यप्रसाद दीक्षित का जन्मदिन है. कवि और आलोचक ओम निश्चल ने अपने साहित्यिक गुरू को बेहद आत्मीय ढंग से याद कर बधाई दी है. उन्होंने लिखा है कि साहित्य के क्षितिज पर अनेक कालजयी कवि लेखक विद्वान हुए हैं, जिनसे सरस्‍वती का मंदिर सुवासित है. हिंदी में एक समय एक से एक दिग्गज वक्ताओं का दौर रहा है. धीरे-धीरे लोग विदा लेते गए और आज हिंदी में ऐसे बहुत कम लोग हैं, जिन्हें बोलते हुए सुनना बहुत कुछ ऐसा पाना होता है जो अमूल्य होता है. ऐसे ही हिंदी के वाग्गेयकार, प्रखर वक्ता, सिद्ध अध्यापक और हिंदी के आधुनिक काल के साहित्य के विपुल अध्येता डॉ सूर्यप्रसाद दीक्षित हैं, जिन्हें वाणी की सिद्धि हासिल है. जिन दिनों मैं लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग से एमए कर रहा था, प्रो दीक्षित हिंदी विभाग के अध्यापक थे तथा साहित्य में उनकी मेधा आकार ले रही थी. हिंदी व संस्कृत विभाग आमने सामने थे. धीरे-धीरे उनकी कीर्ति हिंदी के दिगदिगंत तक फैलती गयी. वे राष्ट्रीय स्‍तर के वक्ताओं में शुमार किए जाने लगे. स्मृति के धनी कुछ ही ऐसे विद्वान हिंदी में हुए हैं, जिन्हें हिंदी की अनेक काव्यकृतियां याद रही हैं. दीक्षित जी ऐसे ही विद्वानों में हैं जिन्हें बड़े से बड़ा गद्यांश और अनेक काव्य के अंश स्मरण हैं. वे बोलते हैं तो जैसे साहित्य का इतिहास उनके साथ-साथ चलता है. ठाकुर प्रसाद सिंह के गीत का एक पद है : मैं चलती जल चलता साथ में. वैसा ही कुछ.
"मैंने 'साठोत्तर हिंदी कविता में विचार तत्व' विषय पर शोध कार्य किया, तो उसके परीक्षकों में प्रो कृष्णचंद लाल के साथ प्रो सूर्यप्रसाद दीक्षित भी थे, उनकी टिप्पणी गुरुदेव डा जनार्दन उपाध्याय के माध्यम से देखने को मिली थी. मुझे गर्व है कि दीक्षित जी की कसौटी पर वह शोध कार्य खरा उतरा. बाद में जब वे साहित्य अकादेमी के हिंदी के संयोजक नियुक्त हुए तो उन्हें कई बार निकट से सुनने का अवसर मिला. किसी भी विषय के प्रतिपादन, पल्ल‍वन, विस्तारण एवं समाहार में उनका जवाब नहीं था. अपनी बात से सहमत कर लेना तथा पूरे मध्यकालीन साहित्य को हृदयंगम करते हुए उसकी बारीकियों को उकेर कर छिलके की तरह रख देना उनके सामर्थ्य का परिचायक है. वे कभी संकीर्ण पगडंडियों के राही नहीं रहे. अपनी सिफत से अपनी लोकप्रियता का मार्ग प्रशस्त करते चलते रहे हैं. साहित्य में जिस समावेशिता की आज आवश्यकता है वे उसके समर्थक हैं. लोक भाषाओं के साहित्य व मध्यकालीन साहित्य के साथ आधुनिक साहित्य के मर्मज्ञ प्रो सूर्यप्रसाद दीक्षित का किसी भी मंच पर होना उस समारोह की सफलता मानी जाती है. "