नई दिल्लीः बरखा की फुहारें गिर रही हैं. कवि मन हुलसित है.'माटी की सुगंध' समूह ने इस मौके पर 'पावस की बूंद' विषय पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन कराया. इस कवि सम्मेलन में दिल्ली, गुड़गांव, करनाल, पानीपत, शामली और कानपुर से कवि तथा कवयित्रियों ने काव्यपाठ किया. कार्यक्रम के अध्यक्ष गीतकार डॉ जयसिंह आर्य थे. मुख्य अतिथि निवेदिता चक्रवर्ती, विशिष्ट अतिथि केसर कमल व अनूपिन्दर सिंह अनूप,संयोजक भारत भूषण वर्मा और संचालक संजय जैन थे. कार्यक्रम का शुभारम्भ आराधना सिंह अनु की सरस्वती वन्दना की प्रस्तुति से हुआ. इसके बाद एक से बढ़कर एक कविताएं सुनाई गयीं. डॉ जयसिंह आर्य ने अपनी रचना के माध्यम से कहा, “साजन बगैर प्यार की सौगात क्या करे, सावन की यह फुहार, यह बरसात क्या करे.' निवेदिता चक्रवर्ती ने पढ़ा, “बूंदों ने बुहारा आंगन ,पिया तुम तो आये नहीं, नृत्य करें बूंदें छन-छन,पिया तुम तो आये नहीं.
इस कार्यक्रम की खास बात यह थी कि बरखा की फुहारों में भीगी कविताओं में प्यार और सावन की अलमस्ती साफ झलक रही थी. अगली प्रस्तुति के रूप में कवि केसर कमल ने पढ़ा, “'मोती बन गयी पावस की बूंदें, रोटी बन गयी सावन की बूंदें. जब भयंकर रूप बाढ़ का देखा, खोटी बन गयी पावस की बूंदें .” अनूपिन्दर सिंह अनूप ने पढ़ा, “चुप करा पाये न हम रोती छतें, कर लिये लाखों जतन बरसात में.” भारत भूषण वर्मा ने अपने काव्यपाठ में कहा, “पावस की ऋतु आयी, बादलों की घटा छायी, मन में खुशी समायी, जल की तरंग है.” सम्मेलन के संचालक संजय जैन ने अपने काव्यपाठ में कहा, “कभी मैं नाव कागज की न बारिश में चला पाया. कभी भी रहनुमा कोई न अब तक मैं बना पाया. लगी थी दौड़ दुनिया में बहुत पैसा कमाने की, मुझे था शौक रिश्तों का फक़त रिश्ते कमा पाया.” इनके अतिरिक्त आराधना सिंह अनु,नरेश लाभ, प्रीतम सिंह प्रीतम, बृजेश सैनी, तरुणा पुण्डीर तरुनिल, राम भारद्वाज ज़ख्मी, मनोज मिश्रा कप्तान, कृष्णकुमार निर्मल और पुष्पलता राठौर आदि ने भी काव्यपाठ किया.