नई दिल्लीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक, महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय पर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत ने 'महामना मदन मोहन मालवीयः व्यक्तित्व एवं विचार' नामक कृति का प्रकाशन किया है, जिसका लोकार्पण राष्ट्रीय संग्रहालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघसंचालक मोहन भागवत ने किया. इस अवसर पर प्रोफेसर बी आर.मणि, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष प्रोफेसर बल्देव भाई शर्मा, प्रोफेसर सतीश चंद्र मित्तल, प्रोफेसर विश्वकर्मा मंच पर मौजूद रहे. राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष प्रो बल्देव भाई शर्मा ने कहा, मुझे लगता है कि यह न्यास के लिए यह बड़े सौभाग्य की बात है कि पहली बार राष्ट्रभक्त मालवीय जी की जीवनी न्यास ने प्रकाशित की है, जिसका लोकार्पण माननीय भागवत जी के द्वारा होना एक सुखद संयोग है. बालमुकुंद पांडेय के द्वारा न्यास को यह अवसर मिला है, यह बड़े गौरव का विषय है. यह पुस्तक मौजूदा हालात में पठनीय है. मालवीय जी के संपूर्ण व्यक्तित्व को लेकर छपी यह पुस्तक उनसे जुड़े पुस्तक प्रेमियों के लिए अनिवार्य ग्रन्थ साबित होगी. उनका कहना था कि पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र हैं. भारत की ज्ञान यात्रा है जिसे हम ऋग्वेद काल से मानते हैं. यह लेखकीय परंपरा मानवीय मूल्यों को लेकर चलने वाली उत्कृष्ट परंपरा है. यह पुस्तक कर्मशीलता की दृष्टि से अपनी छाप छोड़ेंगी. सस्ती दरों पर उत्तम कोटि की पुस्तकें प्रकाशित करने का ध्येय हमारा है, इसी को मद्देनजर हमने संस्कृत में भी पुस्तकों का प्रकाशन किया है. पुस्तक संस्कृति की दिशा में न्यास उत्तरोत्तर कार्य कर रहा है. न्यास लेखक के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करता है, जिन्होंने एक उत्कृष्ट कृति न्यास को उपलब्ध करवाई.
इस मौके पर सर संघचालक मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज 2018 में हम मालवीय जी पर केंद्रित पुस्तक लोकार्पण अवसर पर एकत्र हुए हैं. समय बदलता है, लेकिन मनुष्य के जीवन में बहुत कुछ शाश्वत होता है, जिसे बदला नहीं जा सकत. मनुष्यता आगे बढ़ती है, जो शाश्वत है वही सनातन धर्म है, वही हिन्दू धर्म है. आज फिर से हिंदुस्तान उत्थान की गति की और अग्रसर है, यह सब मालवीय जी की दूरगामी दृष्टिकोण के माध्यम से संभव हुआ है. ऐसे समय में विदेश में जाकर स्वामी विवेकानंद ने भी अपना सार्थक व्यक्तव्य दिया. समय के साथ बहुत कुछ बदला लेकिन हिंदुस्तान आज भी हिंदुस्तान है. वह नहीं बदला तो इस कारण कि यहां अनेक महापुरुष हुए, जिनका लक्ष्य और शिक्षा तथा मंतव्य साफ था, केंद्रित था. इसी कारण हिंदुस्तान अपनी परंपरा पर आज भी टिका हुआ है. अध्यक्षीय उद्धबोधन प्रोफ़ेसर सतीश चंद्र मित्तल ने दिया. धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर विश्वकर्मा ने किया. समारोह में राजधानी दिल्ली के अनेक गण्यमान्य लोग और बुद्धिजीवियों ने शिरकत की. इस अवसर पर न्यास द्वारा इस पुस्तक की बिक्री का भी विशेष स्टाल पुस्तक प्रेमियों के लिए लगाया गया था।.