नई दिल्लीः महान फिल्मकार सत्यजित रे को विश्वभर में बंगाली समुदाय के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है. उन्होंने इस समाज पर केंद्रित फिल्में बनाईं और दुनिया भर में चर्चित हुए. उन्होंने अपने जीवन में लगभग 37 फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिनमें फ़ीचर फ़िल्में, वृत्त चित्र और लघु फ़िल्में शामिल हैं. उनकी शख्सियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें भारत सरकार ने 32 बार राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया. इतना ही नहीं जिस ऑस्कर अवार्ड को पाना हर फिल्मकार का सपना होता है, वह  सत्यजित रे के पास खुद चलकर आया था. 1992 में
सत्यजित
रे को ऑस्कर का ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट देने की घोषणा की गई
, तो वे बहुत बीमार थे. ऐसे में ऑस्कर पदाधिकारियों की टीम कोलकाता में उनके घर पहुंची और उन्हें अवॉर्ड से सम्मानित किया.



सत्यजित
रे के फिल्मी योगदान पर इतना कुछ लिखा गया है कि लेखक
, कहानीकार, प्रकाशक, चित्रकार और फ़िल्म आलोचक सत्यजीत रे पर बहुत कम बात होती है.
सत्यजित
रे ने बांग्ला भाषा के बाल-साहित्य में दो लोकप्रिय चरित्रों की रचना की गुप्तचर फेलुदा और वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर शंकु. इन्होंने कई लघु-कथाएं भी लिखीं
, जो बारह-बारह कहानियों के संकलन में प्रकाशित होती थीं. शर्लक होम्स और डॉक्टर वाटसन की तरह फेलुदा की कहानियों का वर्णन उसका चचेरा भाई तोपसे करता है. सत्यजीत रे ने 1982 में आत्मकथा लिखी 'जखन छोटो छिलम'. इसके अतिरिक्त उन्होंने फ़िल्मों पर कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें 'आवर फ़िल्म्स, देयर फ़िल्म्स', 'विषय चलचित्र', 'एकेई बोले शूटिंग' प्रमुख हैं. उनकी कविताओं का एक संकलन 'तोड़ाय बांधा घोड़ार डिम' भी प्रकाशित हुआ. लुइस कैरल की कविता जैबरवॉकी का अनुवाद और बांग्ला में मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियों का संकलन भी
सत्यजित
रे के चर्चित कामों में एक है. इतना ही नहीं जिम कॉर्बेट की
'मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं', विभूति भूषण बंदोपाध्याय की 'पाथेर पांचाली' और जवाहरलाल नेहरू की 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' के आवरण, रेखांकन, चित्रांकन भी
सत्यजित
रे ने ही डिजाइन किए थे.