नई दिल्ली: विश्व पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन के स्टॉल 'जलसाघर' में लेखकों और पाठकों का आना जाना लगा ही है. लेखक से मिलिए कार्यक्रम में कई आयोजन हुए. 'मैक्लुस्कीगंज' के लेखक विकास कुमार झा से प्रसिद्ध आलोचक वीरेन्द्र यादव ने बातचीत की. 'मैक्लुस्कीगंज' रांची के पास बसा एक एंग्लो-इंडियन गांव है तथा विकास कुमार झा का उपन्यास इसी गांव को केंद्र में रखकर लिखा गया है. उपन्यास के संदर्भ में बातचीत करते हुए विकास कुमार झा ने कहा, "कई दशकों से इस गांव की पीड़ा इस सवाल के साथ अपनी जगह कायम है कि – क्या एक दिन पृथ्वी के नक्शे से मैक्लुस्कीगंज का नामोनिशान मिट जाएगा!" लेखक ने कहा कि यह सवाल जितना सरकार के लिए है उतना ही पाठकों के लिए भी. दूसरे कार्यक्रम में लगभग दो दशक के शोध के बाद लिखे उपन्यास 'अकबर' के लेखक शाज़ी ज़मां ने पाठकों से मिलकर उनके सवालों के जवाब दिए तथा मुग़ल बादशाह अकबर के किस्सों से पाठकों को रूबरू करवाया. दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी से बातचीत में उन्होंने कहा, 'अकबर जैसी शख्सियत पर उपन्यास लिखें और इतिहास का सहारा न लें यह संभव नहीं हो सकता है." अकबर और बीरबल के रोचक किस्सों पर भी लेखक ने कहा, 'बीरबल प्रतिभा के धनी थे, अकबर के दरबार में जितनी छूट उनको थी शायद ही किसी और को थी. आज के समय में दोनों के बहुत किस्से आते हैं इनमें ज्यादातर काल्पनिक हैं." तीसरे कार्यक्रम में लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित, लेखक प्रमोद कुमार अग्रवाल की बहुआयामी पुस्तक 'भारत का विकास और राजनीति' का लोकार्पण वर्धा विश्वविद्यालय के पूर्व कूलपति विभूति नारायण राय एवं कवि दिनेश कुमार शुक्ल ने किया. किताब की प्रासंगिकता पर बात करते हुए प्रमोद कुमार अग्रवाल ने कहा, 'भारत का विकास और राजनीति' पुस्तक में भारत की धड़कन समाहित है तथा भारत के विकास की प्रमुख समस्याओं का सरल एव व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत है.'
अगले कार्यक्रम में विश्व पुस्तक मेले की चर्चित पुस्तक 'जनता स्टोर' के लेखक नवीन चौधरी से पत्रकार आशुतोष उज्जवल ने बातचीत की. आशुतोष से बातचीत में, उपन्यास लिखने की प्रेरणा कहां से मिली, इस सवाल का जवाब देते हुए नवीन चौधरी ने कहा, " स्कूल और कॉलेज के समय से ही मैं छात्र राजनीति में सक्रिय रहा, और मैंने यह महसूस किया कि छात्र राजनीति की बहुत चीजें विश्वविद्यालय के बाहर नहीं आ पाती हैं. उन्हीं अनसुनी किस्सों-कहानियों को इस पुस्तक के माध्यम से बाहर लाने की कोशिश है – जनता स्टोर." पाठकों के सवाल के जवाब में छात्र राजनीति जैसे विषय पर उपन्यास लिखने के बारे उन्होंने कहा "राजनीति को जानना और समझना जरूरी है. मैंने सोचा कि जितना मैं जनता हूं कम से कम इस किताब के माध्यम से उसे बताने की कोशिश करूं." बातचीत के दौरान नवीन चौधरी ने कॉलेज की दुनिया तथा छात्र राजनीति के अपने खट्टे-मीठे अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा छात्र राजनीति के दौरान हम जेल भी गए और जेल के अन्दर की दुनिया भी देखी जो अलग और बहुत ही दुखदाई होती है. जो वहां पैसा फेंक सकता है वह वहां की सुविधाएं ले सकता है. जेल में ग़रीब, चाहे वह छोटे से अपराध के कारण अन्दर गया हो उसे पता नहीं होता कि बाहर निकलने के क्या क़ानूनी दाव पेंच हैं." इस पुस्तक को लिखने में कितना समय लगा इस सवाल का जवाब देते हुए लेखक ने कहा कि "मैंने निश्चय किया था कि हर दिन 2 पेज जरूर लिखूंगा."