नई दिल्लीः साहित्यिक पुस्तकों की घटती बिक्री अब प्रकाशकों के साथ ही लेखकों, अनुवादकों की भी चिंता का विषय बन गया है. साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित साहित्योत्सव के विभिन्न सत्रों में यह बात खुलकर सामने आई. भारत में प्रकाशन की स्थिति पर आयोजित परिचर्चा में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के अध्यक्ष गोविंद प्रसाद शर्मा ने कहा कि ऐसा कई कारणों से हो रहा है, लेकिन प्रमुख कारण है कि हम विद्यालय स्तर पर बच्चों में साहित्य पढ़ने की रुचि विकसित नहीं कर पा रहे हैं. पुस्तकों के मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाते हुए शर्मा ने प्रकाशकों से अनुरोध किया कि वे पुस्तक प्रकाशन को समाज कल्याण की दृष्टि से देखें. इस अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि साहित्य अकादमी लगभग 200 नई पुस्तकें प्रतिवर्ष प्रकाशित करती है और लगभग 300 पुस्तकों का पुनर्मुद्रण करती है, लेकिन हम भी पुस्तकों की बिक्री में लगातार गिरावट देख रहे हैं. हमें इस चुनौती से मिलकर लड़ना होगा. पुस्तकों को आम जन जीवन से जोड़ने की चुनौती आज प्रमुख है. इसके लिए लेखकों को भी आगे आकर पाठकों को खोजना होगा.
इसी तरह  'कथा साहित्य की वर्तमान प्रकाशन स्थिति' पर आधारित सत्र की अध्यक्षता करते हुए निर्मल कांति भट्टाचार्जी ने कहा कि पाठ्य पुस्तकों के प्रकाशन में भी यदि साहित्यिक प्रकाशकों से सहयोग लिया जाए तो इस क्षेत्र में आ रही गिरावट को रोका जा सकता है. उन्होंने भारतीय भाषाओं के अनुवाद को ज्यादा प्रकाशित करने की अपील की. कार्तिका वी.के. ने कहा कि युवा पीढ़ी की प्राथमिकता अब किताब नहीं है. हमें नए लेखकों के साथ-साथ नए पाठकों की भी जरूरत है और इसके लिए दोनों के बीच एक संवाद जरूरी है.  कार्तिका ने अनुवाद की बढ़ती संख्या पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि इधर के वर्षों में अच्छा साहित्य विभिन्न भाषाभाषी क्षेत्रों से आया है. वाणी प्रकाशन का प्रतिनिधित्व कर रही अदिति माहेश्वरी गोयल ने कहा कि दूसरे देशों की तरह हमारे देश में भी इस क्षेत्र में सरकारी सहयोग की आवश्यकता है. जीएसटी के चलते प्रकाशन उद्योग प्रभावित हुआ है. प्रीति शिनॉय ने कहा कि लेखकों को भी पाठकों की वर्तमान रुचि का ध्यान रखते हुए कार्य करना चाहिए. ओड़िआ लेखिका पारमिता सत्पथी ने कहा कि ओड़िआ लेखक, अनुवादक को रॉयल्टी देते वक्त भी प्रकाशक को जीएसटी देना पड़ता है, जिसका प्रभाव प्रकाशन पर भी पड़ा है.