नई दिल्लीः भारतीय संस्कृति, साहित्य, जीवन, स्थान, यहां तक की चिकित्सा विज्ञान का भी कहना ही क्या? इसीलिए 'देखो अपना देश' वेबीनार श्रृंखला के तहत इस बार विषय था स्वास्थ्य विज्ञान. भारतीय चिकित्सा पद्धति के प्राचीन रूप- नाड़ी विज्ञान एवं विभिन्न प्रकार के रीढ़ की हड्डी से संबंधित विकारों के उपचार में इसके सार्थक लाभों के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए पर्यटन मंत्रालय यह वेबीनार 'नाड़ी विज्ञान: रीढ़ की हड्डी से संबंधित विकारों का एक संपूर्ण समाधान' विषय पर कराया. खास बात यह कि हिंदी में ऐसे आयोजनों का अपना महत्त्व है. इस वेबीनार की भूमिका के बारे में स्पष्ट किया गया कि यह असामान्य शीर्षक हमारी संस्कृति और विरासत का एक हिस्सा है और पर्यटन किसी देश की इन विशेषताओं को प्रदर्शित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. स्वास्थ्य विज्ञान का प्राचीन रूप-नाड़ी विज्ञान स्पष्ट रूप से यह रेखांकित करता है कि यात्रा गंतव्यों के अतिरिक्त हमारा देश विभिन्न पहलुओं में कितना अद्भुत है.
इस वेबीनार श्रृंखला के 41वें सत्र का संचालन पर्यटन मंत्रालय की अपर महानिदेशक रुपिंदर बरार ने किया. मुख्य प्रस्तुति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के यौगिक विज्ञान विभाग संस्थापक एवं संकाय प्रमुख तथा छात्र कल्याण के डीन डॉ लक्ष्मीनारायणन जोशी ने किया. उनका साथ दिया योग अध्ययन विभाग में सहायक प्रोफेसर तथा शिमला के हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के आईसीडीईओएल में समन्वयक डॉ अर्पिता नेगी ने. डॉ लक्ष्मीनारायणन जोशी ने यौगिक विज्ञान के विषय-नाड़ी विज्ञान के बारे में दर्शकों को जानकारी दी. उन्होंने कहा आयुर्वेद के अनुसार, मानव शरीर के तीन दोष या आंतरिक विकार होते ,हैं जिनके नाम हैं वात यानी वायु + इथर, पित्त यानी अग्नि + जल तथा कफ यानी पृथ्वी + जल. डॉ लक्ष्मीनारायणन ने व्याख्या की कि किस प्रकार शरीर में इन तत्वों का कोई भी असंतुलन बहुत तीव्र विकारों को जन्म दे देता है. देखो अपना देश वेबीनार श्रृंखला एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है तथा यह वर्चुअल मंच के जरिये एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को लगातार विस्तारित कर रही है।