अहमदाबादः जनजातीय और लोक कला विषयों पर अपनी चित्रकारी के लिए मशहूर प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार, कलाकार हकु शाह का अहमदाबाद में निधन हो गया. वह 85 साल के थे और उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. वह कुछ वक्त से बीमार थे और अस्पताल में एक हफ्ते तक भर्ती रहे, पर स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ. हकु शाह एक गांधीवादी चित्रकार थे. उन्होंने बड़ौदा स्कूल की चित्रकला को एक नया मुकाम दिया. वह पद्ममश्री, जवाहलाल नेहरू फेलोशिप और कला रत्न जैसे सम्मान से नवाजे गए थे.  एक प्रख्यात भारतीय चित्रकार, सांस्कृतिक मानवविज्ञानी, लोक और जनजातीय कला और संस्कृति के चितेरे के अलावा उन्होंने एक लेखक के रूप में भी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की थी. चाहे शब्द हों या कूंची, उनकी रचनाएं भारतीय कला में लोक व जनजातीय कला का प्रतिविंब थीं. खास बात यह कि एक कलाकार के तौर पर उन्होंने अपने मन को कभी दबाया नहीं. उन्हें इनसानी अच्छाई पर बेहद गहरा विश्वास था. साल 2007 में जनवरी से जून तक पीयूष दईया ने उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर लगभग सत्तर घंटों तक बातचीत की थी और उन्हीं वार्ता-रुपों पर 'मानुष' नाम से एक पुस्तक छापी थी.

उस पुस्तक में एक जगह हकु शाह ने कहा था, 'हम बात करते हैं प्रकृति की और मसरूफ़ रहते हैं दूसरी चीज़ों में. हिंसा और क्रूरता की समस्याएं मेरे मन में आती हैं – करुणा का मथामण भी बहुत होता है कि मनुष्य ऐसा क्यों करता है, क्या करता है. इस सब का असर मेरे मन में बराबर बना रहता है, लेकिन चित्रफलक पर जो होता है वह इससे भिन्न है. अन्तत: ध्येय समान है कि दुखी हो या सुखी हो लेकिन मेरे चित्रों को देखकर देखनेवाला स्वयं को बेहतर महसूस करे… गांधी पर एकाग्र चित्र-श्रृंखला 'नूर गांधी का मेरी नज़र में' के अपने पड़ाव के बाद जब 'हमन है इश्क' का बीज मुझ में पनप रहा था, तो मुझे लगा कि कला की पावन/हॉलिस्टिक दृष्टि में फिर से जाना चाहिए. आप देखें कि भारत की सामासिक संस्कृति व बहुलतावादी परम्पराओं में कितनी गहरी रचनात्मकताएं छिपी हैं, जिन्हें हमने अभी तक ठीक तरह से पहचाना नहीं है. दूसरी एक बात मेरे मन में कला के विचार से जुड़ी हुई है. वह यह है कि कला के प्रति हमारा रूझान बहुत एकतरफ़ा है. इस मायने में आप देखें कि हमारी परम्परा कितनी समृद्ध रही है. संगीत चित्र से जुड़ा मालूम पड़ता है. मेरी नीरू बहिन हमेशा आख्यान पूरा गाती थी, रसोई करते समय.' जाहिर है, उन्होंने जीवन भर जो रंग विखेरे, चित्र बनाए या शब्द गढ़े, वह जीवंतता के थे, सकारात्मकता के भी. श्रद्धांजलि लोकजीवन के चितेरे हकु शाह!