पटना: शहर की साहित्यिक संस्था "लेख्य मंजूषानिरंतर काव्य गोष्ठियों का आयोजन करती है ताकि कविता के लिए एक पाठक वर्ग का निर्माण किया जा सके। कवि-गोष्ठियों में गृहिणियों को समुचित संख्या में शामिल करना और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में कवि-गोष्ठियों का आयोजन करवाना इस सोच को पूरा करने की कोशिश है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर 'कौमुदी काव्य संध्या' का आयोजन ' लेख्य-मंजूषा' द्वारा पटना के 'फूड मेनिया 'रेस्तरां में  किया गया।   सतीश राज पुष्करणा जी की अध्यक्षता  में इस कौमुदी काव्य संध्या का आयोजन किया गया।  मशहूर शायर  संजय कुमार कुंदनसमीर परिमल , संस्था की अध्यक्ष  विभा रानी श्रीवास्तव एवं संस्था के सदस्यों की उपस्थिति में ग़ज़ल, कविता और नज़्में पढ़ी गईं.

गोष्ठी की शुरुआत शायर समीर परिमल  इस शेर से की –

क़ब्र पर इंसानियत के आशियाने हो गए

लोग छोटे हो गए, ऊँचे घराने हो गए

मर चुके थे यूँ तो हम इक बेरुख़ी से आपकी

ज़लज़ले, सैलाब और तूफ़ां बहाने हो गए

शायर संजय कुमार कुंदन ने कुछ इस तरह महफिल को आगे बढ़ाया –

 छोड़िए कुछ भी हो ये आप नहीं समझेंगे

हमको लिखना है बह्र हाल हम तो लिखेंगे

आप तो देखते रहते हैं बदन लफ्जों का

हम इसकी रुह की गहराईयों में उतरेंगे

 

' लेख्य-मंजूषा ' की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने निम्नलिखित कविता का पाठ किया

हद की सीमांत ना करो सवाल उठ जाएगा 

गिले शिकवे लांछनों का अट्टाल उठ जाएगा

लहरों से औकात तौलती स्त्री सम्भाल पर को

मौकापरस्त शिकारियों में बवाल उठ जाएगा

 

शायर मो. नसीम अख्तर ने अपने की कुछ इन शब्दों में अभिव्यक्त किया।

 ऐ चांद की किरणों जाओ न 

 तुम उसको छूकर आओ न 

वो कब कब क्या क्या करती है 

वो जागती है या सोती है 

वो किससे बातें करती है 

वो शाम को कैसी लगती है 

वो रात को कैसी दिखती है 

जब सोए कैसी लगती है 

जब जागे कैसी दिखती है 

 तुम चुपके चुपके जाओ न 

 तुम उसको छूकर  आओ न  

 

उसके बाद लेख्य-मंजूषा के सदस्यों ने अपनी अपनी रचनाएं सुनाई।  

और अंत में गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सतीश राज पुष्करणा ने चाइनीज कविता 'ताका' सुनाई.