जयपुर: राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा समानांतर साहित्य महोत्सव के रांगेय राघव मंच पर ' यायावर राहुल ' पर बेहद महत्वपूर्ण चर्चा का आयोजन हुआ। प्रतिभागी थे प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन और आलोचक गजेंद्रकांत शर्मा जबकि उनसे बातचीत की विशाल विक्रम सिंह। यायावर राहुल सांकृत्यायन पर बात करते हुए राजेन्द्र राजन कहा " राहुल जी के जीवन के अनेक पड़ाव है। उनके भीतर एक विद्रोही तेवर था। सनातनी धर्म मे कैद बौद्ध धर्म की जड़ता को देखकर वे मार्क्सवाद की तरफ आये। श्रीकृष्ण सिंह बिहार किसान सभा के अध्यक्ष थे लेकिन सत्ता में आने के बाद उनका चरित्र बदल गया। उस समय वे बुद्धिजीवी जीवन से जुड़े थे। आज के किसान खेत मजदूर के रूप में बदल रहे है। खेतों पर कॉरपोरेट का कब्जा हो रहा है। राहुल जी के जीवन में जड़ता नहीं है। उन्होंने धर्म की जकड़नों को स्वीकार नही किया। राहुल कहते थे बात वही मानो जो तर्क की कसौटी पर टिके। " राजेन्द्र राजन ने आगे कहा " उन्होंने इंदौर में मुक्तिबोध के साथ फासिस्ट विरोधी आयोजन किया। आज हम अपने बच्चों को अपनी ही भाषा से दूर कर रहे हैं । लोकभाषाओं में शिक्षण हो। राहुल जी मानसिक गुलामी को दूर करना चाहते थे। वो मस्तिष्क के स्वतंत्र विकास के पक्षधर थे। पुरस्कार की कसौटी पर लेखक को नहीं कसा जा सकता है। लेखक का पुरस्कार पाठक है। "
साहित्यकार और आलोचक गजेंद्रकांत शर्मा ने राहुल जी के यायावर पर विचार प्रकट करते हुए कहा " उनके लिए लिखना ही महत्वपूर्ण नही था वो लोगों को समझाते भी थे। वो जहां जाते थे वहां के समाज और संस्कृति से जुड़ते थे। इन्ही वजहों से जिस ग्रंथ' प्रमानवार्तिक ' को दुनिया भर के भारतविद ढूंढ रहे थे उसमें सफलता राहुल जी को मिली।उसकी प्रमुख वजह थी उनका तिब्बती भाषा व जनजीवन से जुड़ाव।
विशाल विक्रम सिंह के प्रश्न की आज के कितने लेखक किसान आंदोलन से जुड़ते हैं? राजेन्द्र राजन ने कहा " यदि बड़े नामों के पीछे जायेंगे तो निराशा हाथ लगेगी लेकिन बहुत सारे लेखक, संस्कृतिकर्मी उसमे शामिल हो रहे हैं। जिस प्रकार राहुल जी किसान नेता स्वामी सहजानांद सरस्वती के नेतृत्व में चले आंदोलन में, खासकर अमवारी में के आंदोलन में जेल गए। आज के साहिय्यकारों को भी उसी जज्बे और प्रतिबद्धता से काम करना होगा।"