नई दिल्लीः  रविकांत टेलीविजन चर्चाओं में उत्तर प्रदेश का एक चर्चित चेहरा हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं और 'आज के आईने में राष्ट्रवाद' नामक किताब से खासे चर्चित रहे. यह किताब दैनिक जागरण की बेस्ट सेलर सूची का हिस्सा थी. अब उनकी दूसरी किताब भी राष्ट्रवाद पर ही 'आजादी और राष्ट्रवाद' नाम से छप कर आई है. इस किताब में तीस लेख हैं. आखिर राष्ट्रवाद उनके लिए इतना प्रिय विषय क्यों है? पर जागरण हिंदी से बात करते हुए उन्होंने बताया, 9 फरवरी, 2016 जेएनयू में हुई एक घटना ने  राष्ट्रवाद पर नये सिरे से बहस को जन्म दिया. यह संस्थान अपने वैचारिक खुलेपन और विवाद-संवाद के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. जेएनयू के बाहर भी देश के अनेक हिस्सों में राष्ट्रवाद को लेकर चर्चा हुई इस बहस-मुबाहिसे के बीच राष्ट्रवाद पर एक किताब संकलित करने का विचार मन में आया.आज के आइने में राष्ट्रवाद' और अब 'आजादी और राष्ट्रवाद' इसी विचार की परिणति हैं. पहली किताब में कुल पन्द्रह आलेख संकलित थे, जिनमें से तेरह व्याख्यान जेएनयू में हुई बहस से लिये गये थे. दूसरी किताब के लेख भी इसी तरह के विचार से पोषित हैं और संकलित किए गए हैं. 

'यूरोपीय राष्ट्रवाद से अलग भारतीय राष्ट्रवाद की उत्पत्ति स्वाधीनता आन्दोलन के दौर में उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और वर्णवाद के विरोध में हुई. इसीलिए भारतीय राष्ट्रवाद बहुल संस्कृति पर आधारित समावेषी है. हालांकि इसे धर्म आधारित हिंदू और मुस्लिम राष्ट्रवाद से चुनौती भी मिल रही थी.' 'मेरा मानना है कि राष्ट्रवाद एक आपसदारी की भावना है, एक आपसी सहमति है. अर्नेस्ट रेनन राष्ट्रवाद को रोजाना का जनमतकहते हैं. एकल संस्कृति और नस्लवाद पर आधारित यूरोपीय राष्ट्रवाद को देख-समझकर ही रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर अंबेडकर और प्रेमचंद तक इसके विरोधी थे. लेकिन महात्मा गांधी सर्वधर्म समभाव पर आधारित राष्ट्रवाद को एक पवित्र भावना मानते थे. निश्चित रूप से राष्ट्रवाद की भावना लोगों को आपस में जोड़ती है. भारतीय राष्ट्रवाद का विचार किसी भी किस्म के साम्राज्यवाद, कट्टरता और संकीर्णता का विरोध करता है. यह राष्ट्र के भीतर कमजोर तबकों के अधिकारों को सुनिश्चित कर उन्हें सुगम अवसर उपलब्ध कराकर राष्ट्र की सेवा करने का मौका देता है. इस अर्थ में आदिवासी, दलित, पिछड़े, स्त्रियां और अल्पसंख्यक वर्गों को उत्प्रेरित कर समान धरातल पर लोने की कोशिश है. यही राष्ट्रवाद का सच्चा स्वरूप हो सकता है. इसी भावना से देश मजबूत और सुरक्षित होगा. मेरी किताबें राष्ट्रवाद की मूल भावना को केंद्र में लाकर इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा करा सकें यही हमारी कोशिश है.'