नई दिल्लीः देश ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को उनकी 57वीं पुण्यतिथि पर शिद्दत से याद किया. न हो न निराश करो मन को…जैसी अनगिनत प्रेरक पंक्तियों के रचयिता मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के प्रमुख स्तंभ माने जाते थे. केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, भारतीय जनता पार्टी के नेता डॉ हर्षवर्धन और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर राष्ट्रकवि को नमन किया. गडकरी ने लिखा, “पद्म भूषण से सम्मानित हिंदी के प्रसिद्ध राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी को स्मृति दिवस पर विनम्र अभिवादन.” डॉ हर्षवर्धन ने राष्ट्रकवि की कविता की कुछ पंक्तियां, “नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रह कर कुछ नाम करो” के साथ, “पद्मभूषण से सम्मानित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने जनता के मन की बात, जनता की भाषा में कह कर समाज और देश को वैचारिक पृष्ठभूमि दी, जिसके आधार पर नया दर्शन विकसित हुआ. उनकी पुण्यतिथि पर कोटिश: नमन.” लिखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लिखा, “हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय काव्यधारा के अप्रतिम हस्ताक्षर, प्रखर चिंतक, 'पद्मभूषण' से सम्मानित, 'राष्ट्रकवि' मैथिलीशरण गुप्त जी को उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि. आपका सृजन कार्य युगों-युगों तक हम सभी को प्रेरित करता रहेगा.” याद रहे कि कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म तीन अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के झांसी में हुआ था. कहते हैं कि अपने वक़्त की प्रतिष्ठित पत्रिका 'सरस्वती' में कविताएं छपवाने की ललक ने उन्हें भारत के सबसे महान कवियों में से एक बना दिया. हुआ यह कि उन्होंने अपनी प्रथम कविता बृजभाषा में रची और सरस्वती के संपादक आचार्य पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी के पास भेज दी. उपनाम लिखा 'रसिकेंद्र'. मगर द्विवेदी जी ने इस चिट्ठी के साथ कविता वापस भेज दी कि सरस्वती में बृजभाषा में कविताएं नहीं छापी जातीं. आम लोगों की भाषा खड़ी बोली में लिखकर कविता भेजिए. इसी के साथ आचार्य ने लिखा, 'और हां, रसिकेंद्र बनने का जमाना गया!' आचार्य जी द्वारा लिखे ये शब्द पढ़कर मैथिलीशरण गुप्त ने बृजभाषा से तौबा कर ली. इसी के साथ, 'रसिकेंद्र' को अपने नाम से हटा दिया. फिर आरम्भ हो गए खड़ी बोली में काम करने. वर्ष 1905 में उनकी मेहनत रंग लाई तथा 'हेमंत' कविता 'सरस्वती' में प्रकाशित हो गई. उसके बाद तो उन्होंने लगभग छ दशकों के अपने सृजन काल में 40 से ज्यादा मौलिक काव्य ग्रंथों की रचना की है. उनका निधन 78 वर्ष की उम्र में 12 दिसंबर, 1964 को हुआ था.