पटना, 11 सितंबर। ” महान कथाशिल्पी राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह आज भी अपनी लुभावनी शैली के कारण हिंदी कथा साहित्य में ‘शैली सम्राट’ के रूप में याद किये जाते हैं।उनकी कहानियां अपनी नज़ाकत भरी भाषा और रोचक चरित्र चित्रण के चलते पाठकों को मोहित करती हैं। वे इस शिल्प कप जान गए थे कि पाठक किस तरह कहानी को शुरू से अंत तक पढ़ने के लिए विवश होगा। वे अपने समय के सबसे लोकप्रिय कहानीकार सिद्ध हुए। उन्होंने अपनी कहानियों में समय,सत्य, मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक सरोकारों को सर्वोच्च स्थान दिया।” बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ,कदमकुआं में राजा जी की जयंती के अवसर पर आयोजित लघु कथा गोष्ठी में वक्ताओं ने ये बातें कहीं।
अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने कहा ” राजा जी हिन्दू-मुस्लिम एकता और साम्प्रदायिक सौहार्द के पक्षधर थे। अपनी भाषा में उन्होंने इसका ठोस परिचय दिया।उनकी लोकप्रिय रही रचनाएं राम-रहीम, पूरब और पश्चिम, गांधी टोपी,नारी क्या एक पहेली, वे और हम, तब और अब आदि हैं।”
स्वागत वक्तव्य में पटना विश्विद्यालय में हिंदी के अवकाशप्राप्त अध्यापक डॉ शंकर प्रसाद ने कहा “राजा जी गांधी जी से बहुत प्रभावित थे।”
इस अवसर पर एक लघु कथा गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। गोष्ठी में वयोवृद्ध रंगकर्मी अमिय नाथ चटर्जी ने ‘मानव और पशु’, डॉ शंकर प्रसाद ने ‘किट्टी पार्टी’, पंकज प्रियम ने ‘धनुर्धर’, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री ने ‘हिसाब -बराबर’ , शुभचन्द्र सिन्हा ने ‘ दस रुपया’, डॉ विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘चार दोस्त’, अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘अच्छे कार्यो की तलाश, कुमारी मेनका ने ‘वजन’ और श्याम नारायण महाश्रेष्ठ ने ‘महामूर्ख’ लघुकथा का पाठ किया।
इस गोष्ठी में राजकिशोर सिंह , हविरागी झा, लता परासर, बांके बिहारी साव, रामाशीष ठाकुर, पवन कुमार मिश्र, चन्द्रशेखर आज़ाद, अनिल कुमार झा सहित साहित्य से जुड़े कई प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
मंच संचालन योगेंद्र मिश्र जबकि धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ कवि राजकुमार प्रेमी ने किया।