जयपुर: राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव पर दो दिवसीय विशेष संवाद कार्यक्रम और कला प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. जिसके तहत पहले दिन 'आजादी आंदोलन, महात्मा गांधी और कला' विषय पर समीक्षक डॉ राजेश कुमार व्यास का और दूसरे दिन 'स्वतंत्रता के बाद का भारतीय कला परिदृश्य' पर कला समीक्षक, कवि प्रयाग शुक्ल का व्याख्यान हुआ. व्यास ने गांधी और उनकी कला से निकटता के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि गांधी ने आजादी आंदोलन से कला और कलाकारों को जोड़ने का कार्य किया, लेकिन वे कलाओं से अपनी निकटता निरंतर छुपाते थे. गांधी की पहली प्राथमिकता स्वराज स्थापना थी, इसलिए वे कला से अपनी निकटता छुपाते थे. गांधी को समझने के लिए उनके जीवन के बाहरी पक्ष के साथ उनके आंतरिक पक्ष में भी जाना होगा. गांधी शांति निकेतन में पहली बार नंदलाल बोस की कला से रूबरू हुए. इस दौरान उन्होंने गहरे से अनुभव किया कि जो कार्य वे आजादी आंदोलन में लोगों को जोड़कर कर रहे हैं वही कार्य नंदलाल बोस कला से कर रहे हैं.
व्यास ने यह स्वीकारा कि असल में महात्मा गांधी के कला सरोकारों पर पिछले कोई एक दशक से शोध चल रहा है. संपूर्ण गांधी वाङ्मय और भी अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकें तो मेरे स्वयं के पुस्तकालय में हैं ही पर देशभर के पुस्तकालयों से भी बहुतेरी पुस्तकें खंगाली है. शोध के कुछ अंश राजस्थान पत्रिका, अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं के आग्रह पर और इस तरह के व्याख्यानों के जरिए व्यवस्थित सामने आए भी हैं पर चाहता हूं-अपनी स्वयं की स्थापनाओं के साथ पुस्तक रूप में यह आ जाए. इस अवसर पर प्रयाग शुक्ल ने भी अपना मत रखा. उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी ललित कला अकादमी की दीर्घा में लगाई गई थी. कार्यक्रम में वरिष्ठ गांधीवादी कवि नंदकिशोर आचार्य, विद्यासागर उपाध्याय, डॉ नाथूलाल वर्मा, भवानी शंकर आदि सहित बड़ी संख्या में पत्रकार, कलाकार और शिक्षाविदों सहित गांधीवादी और कलाप्रेमी मौजूद थे.