नई दिल्लीः राजधानी की यह एक शाम विश्व चेतना के विस्तार की शाम थी. कविता, कहानियां, किस्से और ज्ञानभरी बातों की शाम. यहां दुनिया की लेखिकाओं के कथात्मक जीवन, उनकी रचनाओं से मिलने-समझने, उनके मन-दिमाग को जानने का एक अनूठा अनुभव था. मौका था रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय से संबद्ध वनमाली सृजन पीठ और भारतीय ज्ञानपीठ के इंडिया हैबिटेट सेंटर में संयुक्त रूप से आयोजित 'विश्व कथा में स्त्री अस्मिता' पर चर्चा और कथा पाठ का. स्वागत वक्तव्य भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद ने दिया. कार्यक्रम के आरंभ में वनमाली सृजन पीठ के अध्यक्ष, वरिष्ठ कवि और आलोचक लीलाधर मंडलोई ने विश्व कथा साहित्य में लेखिकाओं की प्रकाशित कहानियों पर बीज वक्तव्य दिया. इसका आधार यादवेंद्र की विश्व लेखिकाओं की 58 कहानियां थीं. ये कहानियां उनके प्रकाशित दो संग्रहों से थीं- यथा भारतीय ज्ञानपीठ से 'तंग गलियों से दिखता है आकाश' और संभावना से प्रकाशित 'स्याही की गमक'. इसके साथ ही उन्होंने लेखिकाओं के वस्तु जगत, सरोकार, राजनीति और त्रासदी के बारे में चर्चा की.
अनुवादक रचनाकार यादवेंद्र ने अनुवाद की रचना प्रक्रिया के बारे में विस्तार से चर्चा की कि रचनाएं किस तरह अनुवाद के दौरान अपना प्रभाव छोड़ती हैं. अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा, "यह एक विशेष अनुभव था. मैं इन अनुवादों को करने के पहले जो था, वह अनुवादों के बाद न रहा. यही मेरे जीवन की शिखर उपलब्धि है." यादवेंद्र ने अर्जेन्टीना की लेखिका लुइज़ा वेनेजुएला की 'घुड़सवारी' शीर्षक वाली कथा का प्रभावी पाठ भी किया. अंत में वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह ने इन दोनों कथा संग्रहों की कहानियों के चुनिंदा स्वरों को रेखांकित किया और उनमें निहित राजनीति, नारी जिजीविषा, विचार और संघर्ष की चर्चा की. बहुपठित लेखिका सविता सिंह ने विश्व की लेखिकाओं की कहानियों पर सूक्ष्म आलोचना भी प्रस्तुत किया.