नई दिल्ली: शहंशाह अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक रहीम अथवा अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना की पुस्तक 'अब्दुर्रहीम ख़ानेख़ाना- काव्य-सौन्दर्य और सार्थकता' का लोकार्पण हुमायूं के मकबरे से सटे 16वीं सदी के विरासत परिसर सुंदर नर्सरी में हुआ. इस पुस्तक में 300 से भी अधिक दोहे, बरवै, व अन्य छन्दों में रचित पद यहाँ सरल व्याख्या के साथ संकलित हैं. इसके अतिरिक्त उनकी कविता के विभिन्न पक्षों पर केन्द्रित और हिन्दी के ख्याति-लब्ध विद्वानों द्वारा लिखित ग्यारह निबन्ध भी इसमें संयोजित हैं. जो इसके पाठकों को रहीम की कविता को समझने और सराहने की नयी दृष्टि देंगे. वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का संपादन हरीश त्रिवेदी द्वारा किया है. इंटर ग्लोब फाउंडेशन, आग़ा ख़ान ट्रस्ट फॉर कल्चर एवं वाणी प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में संस्कृति और पर्यटन मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने शिरकत की. कार्यक्रम का आरंभ सोनम कालरा द्वारा रहीम के दोहे 'रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय' से हुआ.

विशिष्ट अतिथि प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा, "रहीम एक सुन्दर व्यक्तिव थे मैं आज यहां इसलिए हूं ताकि रहीम का मकबरा दोबारा से अच्छे से बने और जो सम्मान उन्हें मिलना चाहिए वो उन्हें मिले." पुस्तक के संपादक हरीश त्रिवेदी ने कहा, "यह पुस्तक काफी लेखकों की मेहनत के बाद लगभग तीन साल बाद आपके सामने आई है. रहीम का जो शरीर है वो तो मकबरे में दफ़न है लेकिन उनकी आत्मा अभी भी पुस्तक के जरिये बोल रही है. मुसलमान होकर भी उन्होंने भक्ति भाव के दोहे और कवितायें लिखी. यह अपने आप में अद्भुत है.इंटर ग्लोब फाउंडेशन की रोहिणी ने कहा, “हम फाउंडेशन के माध्यम से हमारी देश की विरासत को सुरक्षित करते हैं और चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी को रहीम के  बारे में जानने को मिले.आरके चतुर्वेदी ने कहा, "रहीम साहित्यकार के साथ-साथ बहुत बड़े योद्धा भी थे." अरुण महेश्वरी ने कहा, "हम चाहते थे कि रहीम की जिंदगी पर एक हिंदी की किताब होनी चाहिए, जिससे हिंदी पाठक उनके बारे में अधिक से अधिक जान सकें. रहीम पूर्ण भारतीय थे. भारत की संस्कृति उनकी आत्मा में बसती थी. गुलज़ार साहब और गोपीचंद के हम आभारी हैं कि उन्होंने इस पुस्तक के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.