नई दिल्लीः क्या वाकई धर्म का शासकों ने हमेशा इस्तेमाल किया है? या यह केवल इक्कीसवीं सदी में आया जब अलग- अलग देश इस्लामिक और ईसाई राष्ट्रों में बंटे हैं और भारत जैसे देश में भी एक बड़ा वर्ग इसे हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कर रहा है. देश के कई लेखकों का मानना है कि सियासत को धर्म से बचाया नहीं जा सकता और यह हर काल में रहा है. यहां तक कि अकबर भी इससे अछूता नहीं था और आज भी हम इससे बच नहीं सकते. राजनीतिक दलों और नेताओं को हमेशा धर्म से फायदा मिलता रहा है. यहां तक कि वे धार्मिक प्रतीकों व भगवानों को अपने नाम के साथ जोड़ कर देखने में सुकून महसूसते रहे हैं. अकबर को अल्लाह ओ अकबर सुनना अच्छा लगता था, क्योंकि इसमे अकबर जुड़ा हुआ था. वहीं, वाराणसी में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने नरेंद्र मोदी के लिए हर हर मोदी-घर घर मोदी का नारा गढ़ लिया, जिसे महादेव से जोड़कर देखा गया. खास बात यह भी जनता और भाजपा ने इसे स्वीकार भी कर लिया. कुछ समय पहले जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान बादशाह अकबर और दारा शिकोह पर लिखी दो अलग-अलग पुस्तकों, अकबर पर पत्रकार मणिमुग्ध शर्मा  और दारा शिकोह पर इतिहास लेखक सुप्रिया गांधी ने किताब पर चर्चा के दौरान यह बातें सामने आईं.

लेखक विलीयम डिरम्परेल इस बात से इत्तिफाक रखते हैं कि आप चाहे आलोचना करो या स्वीकार, धर्म के प्रभाव से बचा नहीं जा सकता. पत्रकार मणिमुग्ध शर्मा का कहना था कि हमने राजाओं को हमेशा हिंदू, मुस्लिम या ईसाई के राजा के रूप में देखा. उन्हें भारतीय राजा के रूप में नहीं देखा गया; और 1947 में जब से पाकिस्तान अस्तित्व में आया है भारत में किसी भी मुस्लिम शासक के प्रति ज्यादा सहानुभूति बची नहीं है, चाहे वह कितना भी अच्छा शासक रहा हो. इसके लिए पढ़ा लिखा तबका भी जिम्मेदार है. मणिमुग्ध का तर्क था कि आम जनता बुद्धिजीवियों की बातें नहीं समझती है और शोधकर्ताओं की किताबें भी नहीं पढ़ती है. आम जनता काले व सफेद में लोगों को परखती है. शर्मा का तर्क था कि धर्मनिरपेक्ष एक आधुनिक शब्द है, और अकबर के लिए सहिष्णु शब्द का इस्तेमाल ज्यादा सही रहेगा. उनका य्ह भी तर्क था कि अकबर के दीन-ए-इलाही को भी धर्म नहीं बल्कि एक विचार और बहुत हद तक एक राजनीतिक विचार कहा जा सकता है. सुप्रिया गांधी का मानना था कि दारा शिकोह ने धर्म के साथ बहुत सारे प्रयोग किए. दारा शिकोह ने धर्म को निष्पक्ष रूप से देखा और अपने पूर्व शासकों के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास किया. खास बात यह कि दारा शिकोह एक दार्शनिक था और बादशाह बनने की इच्छा रखता था, पर उसे वह अवसर नहीं मिल सका.