नई दिल्लीः दिल्ली पुस्तक मेले में कार्यक्रमों की अपनी कड़ी में 'अस्मिता', 'बाल साहिती' की ही तरज पर केंद्रीय साहित्य अकादमी ने 'युवा साहिती' कार्यक्रम का भी आयोजन किया. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ लेखिका कमल कुमार ने की. यह कार्यक्रम कई भारतीय भाषाओं के रचनाकारों को समेटे था, जिसमें खास तौर से स्नेह सुधा (हिंदी), त्रिपुरारि (उर्दू) एवं मनीष कुमार झा (मैथिली) ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं. सबसे पहले स्नेह सुधा ने अपनी कहानी 'फांस' प्रस्तुत की. इस कहानी में युवा अवस्था में प्रेम और विवाह को लेकर होने वाले असमंजस को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया था. इनके बाद बारी उर्दू लेखक त्रिपुरारि की थी. त्रिपुरारि ने पहले कुछ ग़ज़लें प्रस्तुत कीं और उसके बाद कुछ नज़्में. उनकी 'माचिस', 'जेहन', 'उदास लड़का' और 'गैंगरेप' नज़्मों को श्रोताओं ने बेहद पसंद किया. इन नज़्मों में मोहब्बत ही नहीं बल्कि एटमबम से लेकर आज के समाज में घट रही चिंताजनक घटनाओं को प्रस्तुत किया गया था. मैथिली के युवा गीतकार मनीष कुमार झा ने अपनी कविताओं में शहीद और उनके परिवार, स्त्रियों की दशा और देशभक्ति से जुड़ी कविताएं प्रस्तुत कीं.
कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ लेखिका और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं कमल कुमार ने तीनों युवा रचनाकारों द्वारा प्रस्तुत रचनाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारे युवा रचनाकार समाज की बदलती ज्यामिति को अच्छी तरह समझ रहे हैं और उसे अपने अनुभवों के आधार पर अलग-अलग तरीके से व्यक्त भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कविताओं के साथ सबसे सकारात्मक बात यही है कि कविताएं हमेशा भाषाओं की सीमा को लांघकर सब तक पहुंचती हैं. यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है. कार्यक्रम के अंत में उन्होंने अपनी कविता 'सीता' प्रस्तुत की. साहित्य अकादमी द्वारा दिल्ली पुस्तक मेले में आयोजित कार्यक्रमों की यह अंतिम कड़ी थी. इससे पहले अकादमी साहित्य मंच, बाल साहिती, आदिवासी कवि सम्मेलन एवं अस्मिता जैसे चर्चित कार्यक्रमों का आयोजन कर चुकी थी. कुल मिलाकर साहित्य अकादमी दिल्ली पुस्तक मेले में ऐसे आयोजनों से पाठकों और साहित्यकारों के साथ मेला प्रतिभागी प्रकाशकों के बीच अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने में सफल रही, जिसके लिए वह जानी भी जाती है.