पटना, साहित्यिक-समूह ' 'कॉमनप्लेस' के तत्वावधान में युवा-कवि कुमार मंगलम का कविता-पाठ पाटलिपुत्रा, पटना में आयोजित हुआ। पाठ के बाद कवि ने अपनी रचनाओं और अपनी अबतक की यात्रा पर भी बात थी।  ' कवि कुमार मंगलम की रचनाओं में गाँव और शहर के चित्रों के साथ ही अपने अनुभवों का सुन्दर मिश्रण था। अपनी एक रचना 'पराजय' में मंगलम कहते हैं..

."रमई काका कठकरेज थे/

झूल गए धरन से/बच्चों का मुंह देख /कहीं झूल जाने के विचार का गलाघोंट देता हूँ/मेरे विचारों की रस्सी /बहुत महीन और कमजोर है/कई-कई बार हारा .

अपनी एक दूसरी कविता में कवि ने कहा कि " संवादहीन समय में पहला संबोधन हो सकता है/केवल एक नाम/नाम लेते ही/संवाद का शिरा पकड़ा जा सकता है/जैसे बहुत अबोले के बाद/कहीं दूर से कोई सिर्फ यह कहे/मंगलम या कुमार"…

कॉमनप्लेस ' युवा साहित्यकारों का समूह है जो पटना में अपनी सृजनात्मक और संगठनात्मक सक्रियता के लिए जाना जाता है। इसकी  विशेषता है नवोदित कवियों व रचनाकारों द्वारा निरंतर काव्य पाठ का आयोजन। अधिकांश आयोजन पारंपरिक हॉलों की बजाय अनौपचारिक स्पेस में किये जाते हैं।

इस आयोजन में उपस्थित श्रोताओं ने कवि से बातचीत भी की।सुधी-श्रोताओं और साहित्य-प्रेमियों ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जिसमें कवि राकेश रंजन, राजेश कमल, शशांक, सत्यम, अंचित, उपांशु , उत्कर्ष और शिरीष आदि उपस्थित रहें।