यतींद्र मिश्र का नाम हिंदी सुर, संगीत व साहित्य के पाठकों के लिए कोई अनजाना नहीं है. बेगम अख्तर पर उनकी एक किताब वाणी प्रकाशन ने 'अख़्तरी: सोज़ और साज़ का अफ़साना' नाम से छापी है. इस किताब के बारे में जागरण हिंदी से खास बातचीत में यतींद्र मिश्र का कहना था कि यह क़िताब बेगम अख़्तर के जीवन पर शोध करके सम्पादित की गयी है. इसमें इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि उनकी सांगीतिक-यात्रा और जीवन से सम्बन्धित उन सारी चीज़ों पर एक विमर्श तैयार किया जाए, जिससे अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी से बेगम अख़्तर तक के लम्बे सफर का जायजा लिया जा सके. ख़ुद मेरे लेखों और टिप्पणियों के अलावा इसमें संगीत और बेगम अख़्तर के विशेषज्ञों से लेख लिखवाये गये हैं, जिनमें सलीम किदवई, शीला धर, इक़बाल रिज़वी, डॉ. रक्षंदा ज़लील, कुणाल रे, डॉ. प्रवीण झा और ममता कालिया जैसे विद्वान शामिल हैं. संगीत जगत के ढेरों बड़े फ़नकारों ने भी इसमें लिखा है, जिनमें प्रमुख रूप से श्रुति सादोलिकर, शुभा मुद्गल, अनीश प्रधान, कौमुदी मुंशी, मालिनी अवस्थी आदि की टिप्पणियां शामिल हैं. उनकी दो प्रमुख शिष्याओं से लम्बी बातचीत भी पुस्तक का आकर्षण है.
दरअसल बेगम अख़्तर साहिबा की कहानी मुझे काफी दिलचस्प, प्रेरक और सार्थक लगी. उनकी ज़िन्दगी के जिस पक्ष ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया, वह उनका उन्मुक्त जीवन है. किस तरह पिछली शताब्दी के पूर्वार्द्ध में एक गायिका और फ़िल्म अभिनेत्री अपनी शख़्सियत के बेलौस अन्दाज, शाइस्तगी, उदारता और कलाकारी के चलते एक बड़े क़िरदार में ढलती है, उसे पढ़ना और समझना उस दौर के सांस्कृतिक व राजनीतिक सन्दर्भों को जानने की तरह था. इन सब बातों की रोशनी में मुझे बेगम अख़्तर एक बड़े फ़नकार और उतनी ही बड़ी इंसान के रूप में नज़र आती हैं. इसे पकड़ने की ही कोशिश मैंने की है. मेरा मानना है कि भारतीय सुर, संगीत और साहित्य की समझ रखने वालों के साथ ही बेगम अख्तर के जीवन के बारे में जानने वाले शोधार्थियों के लिए भी यह पुस्तक काफी उपयोगी होगी. शेष तो पाठक और आलोचक अपना मत बताएंगे ही.